मय सूद के आरिगपूडी | May Sud Ke Aarigpudi

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May Sud Ke Aarigpudi by शरद जोशी - Sharad Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मौत जो दे देते जब वे तीनो आई थी, तो किसी को कोई खबर न थी । अब भी किसी को कुछ न पता होता अगर एक ग़न्दी घटना न घटती । यूं तो जिन्दगी ही चक्की थी. इस घटना के बाद तो वह गले का पत्थर-सा बन गई थी, न ढोते बसे, न फेंकते बने! अगर लगर के,लुच्चे:उचुदके, कुछ,करते कराते तो भी कोई वात त्थी, और कुछ नही तो वे किसी न किसी तरहूं का, मुकाबला कर ही सकती, थीं, पाँच-दस लोग बचाते ही । गरीबी ही.सही, अभी दुनिया इतनी कमीनी नहीं कि आँखों के, सामने कमसिन .लड्कियो पर हमला हो रहा हो, और वे घिना हिले-डुले आँखों पर हाथ रखे रहें ।' इसलिए बात कुछ अजीब-्सी हो थी । हमदर्द भी शायद हम- दर्दी न दिखा पाते थे । कमला, सरला, विमला तीन वहिंनें थी, सयानी, सलौनी । कवारी । बड़ी की उज् कोई वाईस की, सरला की उन्नीस की, और विमला की अट्टारह की ऐसी उम्न जब जवानी कली की तरह मिलती है। महकती हैं। और वे ? जवानी ही उनकी दुश्मत-सी थी | कांदा, वे भी और सडकियों की तरह, माँ-्वाप के पास रहती । और वक्‍त पर स्कूल जातीं, पढ़तीं और पास होती 1 कुछ भी तो ज़िन्दगी में ऐसा ने हुआ ही हर कोई मामूली समकता है ! हर वात उनके वारे में शायद गैर-मा मूली - सोथो। जिस उम्न में स्त्रियाँ स्कूल छोड़-छाड़कर, गुहस्थिया, वसाने लगती हैं, तीनो रोजो-रोटी का रास्ता दूँढती, रेंगती-रेंगती उस छोटे-से नगर में आई थी 1 जिन मुसीबती से भाग कर आई थीं, मानों वे सुसीवरतें भी, उनके साथ होड़ करती 'भागतो चली आई थी 1




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