न्याय मूर्ति | Nayay Murti
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्यायमूर्ति १७
स्परीके गुने तक भी छठे ययर् नावाचियि ही र्दे तो गाव के पच लिसी
बैप्णव को अभिभावक निमत कर देंगे । यह खबर जो सुनी, तो वाईदास
मादर खडा ह गया! वाप उसकी और को पीठ विषु वैठेन्वदे बोला,
इस घर से तु निवद जा । निवल जा निवठ जा ! यह घर मेरा है ।
इस घर में हु कभी कदम मत रखना । मेरे धर्म चचछ होंगे । मेरी मौत
वी घड़ी में तू मेरे मुह मे पानी न डालना, सरने पर मुह मे आग भी ने दे
पाएगा, श्राद्ध भी न वर पाएगा । ईथ्वर मेरी दोनो आखें से छें ती मैं जी
जाम 1 तेरी शउख मुझे न देखनी पड़े ।
दूसरे ही दिन रान को बाप वा खून हुआ । गरमी वे दिन थे । वरामदे
पर एक बोर बूढ़ा सोया था, दूसरी ओर दोनो पोती में साथ सोई थी
बुद्या । गहरी रात में बिसी ने बुल्हादी से बूढें वे रार मे दो टुकड़े वर
दिए} एत ची हुई। चुद्धिया हृडवडा वर उठ बैठी । उसन हंरयरि बो आगन
होकर निकरते देखा । पहचान गर, हतयारा उसका बेटा था । सर पर
दो बार चोट की गई थी । पहली चोट शायद सर वे एवं किनारे पढ़ी,
दूपरी ठीत बीच में । मा ने गवाही दी--घुधलटा-सा अधघेरा था, अभी
अभी चाद दवा या, उसी समय खूनी भागा । उसने खूनी को साफ देखा ।
खूनी उसका बेटा बाई था । दछाईदास ने अधिनाश यायू थो अपना चकील
रबधा था । फौजदारी में उनका नाम था, इसलिए बुछ खेत बेचकर
हुशार रुपये का जुगाद बरने आदमी भेजकर उन्हें ठीव वियां था 1
अविनाश वादू ने जिरह दे कोई बसर नहीं रवदी । मा की बस एन ही
वान---बावाः--
मीरा प्र जविनाग बादर ने दाटते हए वदा धा--नही ! पाया
नहीं । बावा-दावा नहीं । हुडूर बहोत
मा ने बहा या, हुजूर, मा से दटे को पहचानने में भूल हो सक हो है *
में चालीस साठ से उसवी मा हू । दोपहर को जब वह खेत से लौटता
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