न्याय मूर्ति | Nayay Murti

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Nayay Murti by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्यायमूर्ति १७ स्परीके गुने तक भी छठे ययर्‌ नावाचियि ही र्दे तो गाव के पच लिसी बैप्णव को अभिभावक निमत कर देंगे । यह खबर जो सुनी, तो वाईदास मादर खडा ह गया! वाप उसकी और को पीठ विषु वैठेन्वदे बोला, इस घर से तु निवद जा । निवल जा निवठ जा ! यह घर मेरा है । इस घर में हु कभी कदम मत रखना । मेरे धर्म चचछ होंगे । मेरी मौत वी घड़ी में तू मेरे मुह मे पानी न डालना, सरने पर मुह मे आग भी ने दे पाएगा, श्राद्ध भी न वर पाएगा । ईथ्वर मेरी दोनो आखें से छें ती मैं जी जाम 1 तेरी शउख मुझे न देखनी पड़े । दूसरे ही दिन रान को बाप वा खून हुआ । गरमी वे दिन थे । वरामदे पर एक बोर बूढ़ा सोया था, दूसरी ओर दोनो पोती में साथ सोई थी बुद्या । गहरी रात में बिसी ने बुल्हादी से बूढें वे रार मे दो टुकड़े वर दिए} एत ची हुई। चुद्धिया हृडवडा वर उठ बैठी । उसन हंरयरि बो आगन होकर निकरते देखा । पहचान गर, हतयारा उसका बेटा था । सर पर दो बार चोट की गई थी । पहली चोट शायद सर वे एवं किनारे पढ़ी, दूपरी ठीत बीच में । मा ने गवाही दी--घुधलटा-सा अधघेरा था, अभी अभी चाद दवा या, उसी समय खूनी भागा । उसने खूनी को साफ देखा । खूनी उसका बेटा बाई था । दछाईदास ने अधिनाश यायू थो अपना चकील रबधा था । फौजदारी में उनका नाम था, इसलिए बुछ खेत बेचकर हुशार रुपये का जुगाद बरने आदमी भेजकर उन्हें ठीव वियां था 1 अविनाश वादू ने जिरह दे कोई बसर नहीं रवदी । मा की बस एन ही वान---बावाः-- मीरा प्र जविनाग बादर ने दाटते हए वदा धा--नही ! पाया नहीं । बावा-दावा नहीं । हुडूर बहोत मा ने बहा या, हुजूर, मा से दटे को पहचानने में भूल हो सक हो है * में चालीस साठ से उसवी मा हू । दोपहर को जब वह खेत से लौटता




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