चीन - कल और आज | Chin-kal aur aaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीनमें भारतका प्रथम राजदूत ७ पूर्व और पश्चिमकी प्रतिद्न्दिता घीरे-वीरे स्पष्ट हो रही थी और सोवियत शट संसारको यह दिखानेका गम्भीर प्रयल कर रदा था कि अमेरिका और पश्चिमी मित्ररा्ट्र उन युद्कालीन समझौतोंसि निश्चित रूपसे दूर होते जा रहे हैं जो उसकी रायमें संयुक्तराष्ट्रसंघके आधार हैं। कोरिया और यू नानके प्रनोंने उन्हें यह हमला करनेके लिए शख्र प्रदान कर दिये । कोरिया के सम्बन्धर्में सोवियत रूसकी स्थिति विल्कुल स्पष्ट और सर थी | सका दृष्टिकोण यदद था कि साधारण सभाकों अपने घोषणापत्रके अनुसार युद्ध सम्बन्धी समझौतेसे सम्बन्ध रखनेवाले प्रद्नॉपर विचार करनेका अधि- कार नहीं है; कोरियाका प्रदन एक ऐसा प्रक्न है जिसका निबटारा पूर्वकी चार महाशक्तिया, अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत यूनियन और चोनके बीच विचार-विमशसि ही हो सकता है और साधारण सभा अपने विचारणीय विप्योकी सूचीमें को रियाके प्रश्नको त्थकर दूसरेके अधिकारोंका बलपूर्वक अनुचित ढंगसे उपयोग कर रही है । यूनानके सम्बन्धमें श्री मैनुएलस्कीका डष्टिकोण यह था कि यह उस देशकी आन्तरिक राजनीतिमें आंग्ल- अमेरिकी दस्तकषेपकर प्र है और रूस इससे अधिक कुछ नहीं चाहता कि यूनानकी समस्याका समाधान स्वयं यूनानिरयोको ही करने दिया जाय | श्री मैनुएलस्कीने सोवियत दृष्टिकोणका समर्थन करनेकी नहीं बल्कि उसके प्रति केवल तटस्थताकी माँग की । तीसरी समिति ( आर्थिक और सामाजिक ) की कार्यवाहियोंमें मेरी बड़ी दिलचस्पी यी किन्तु उससे मी अधिक दिर्चस्पी मुञ्चे उस उ्च- स्तरीय राजनीतिक नाटके हुई जो क्रमराः दइमलरगोके सामने खुल्ता जा सदा था | जैसे-जैसे दिन बीतते गये वाद-प्रतिवाद अधिकसे अधिक उम्र दोते गये । कभी-कमी इनकी उम्रता इतनी बढ़ जाती थी कि इन बहसों- का स्तर गन्दे गाली-गौनतक उतर आता था। यह स्पष्ट होने छगा कि हम एक ऐसे लम्बे अन्तरराष्ट्रीय तनातनी के युगमें प्रवेश कर रहे हैं जिसमें संसार दो प्रतिदन्दी शिविरोंमें बैंटता जा रहा है । रूसके सारे कार्योंकी शेरणा, ऐसा प्रतीत होता था, इस बातसे मिल रही थी कि उसे विश्वास




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