डॉ राधाकृष्णन [एक जीवनी] | Dr. Radhakrishnan (ek Jivani)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यवसायश्च यस्य स्पत्तस्या्वृत्ति भयं कुतः” ( महाभारत ) झर्थात्‌--बुद्धि, प्रभाव, तेज, बल, उठने की इच्छा, उद्योग ये सब जिस मनुष्य गेँ हो, उसकी जीविका का क्या भय हो सकंता है 1 ( महर्षि व्यास ) “भारतीय दर्शन” के क्षेत्र में डाक्टर साहब का स्थान बहुत ही ऊँचा है । उसके सम्मेलन के वह चार बार श्रध्यक्ष रह चुके हैं । कलकत्ता के भ्रधिवेशने में उनकी ६० थीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में उनको एके श्रभिनन्दन ग्रन्थ भेट किया गया था । यह्‌ ग्रन्थ दो भागों मे प्रकारित है । इसमे भारतीय ददोन तथा पादचात्य दशंन-दास्तर के गण्य-मान्य विद्वानों के श्रधिकार-पूरां लेख संग्रहीत है । ग्रन्थ के दोनों भाग चिव के देन-शास्त्र का एक प्रकार से पुस्तकाकार विदवविद्यालय है । सत्‌ १९५२ में अमेरिका में उनके दारोनिकं विचारो से सम्बन्धित एक बहुत ही मुल्यवादु पुस्तक प्रकाशित हुई थी । डा० साहब के ऊपर विभिन्न विचारकों एवं दर्शनिकों का प्रभाव पड़ा है । उनकी तुलना मधु-मक्खी से की जा सकती है। विभिन्न फलो के भ्रु को वहु एकं स्थान पर एकत्र करती दै श्रौर मधूके लोभी उसका भोग करते हैं। ठीक हसी प्रकार डा० राधघाकृष्णनन से विभिन्न ग्रम्थों का प्रशयन एवं मस्थन करके उनके साररूप ज्ञान को बिदव में विकीण किया है । उन्होंने इस विषय में स्वयं लिखा' है घौर स्पष्ट शब्दों में लिखा है।* ससका हिन्दी में झनुदित सारा निम्नलिखित प्रकार है-- ॥ 7781 ~ = ~~न एकल है ` पोण्क ९५16 1० शपते एण र णा + पापो ठा १ ४06 [म ० [णप एपिजणु0क, किपर्शिशिफ्िती छह प्ल ( ्रत०7 एप द्ध्य, पकम ण




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