भारत में सार्वजनिक शिक्षा का इतिहास | Bharat Me Sarvajanik Shiksha Ka Itihas

Book Image : भारत में सार्वजनिक शिक्षा का इतिहास  - Bharat Me Sarvajanik Shiksha Ka Itihas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

Add Infomation About. Pt. Sitaram Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वर्ण-व्यवस्था जैसे सिर, द्वाथ, उदर, पर आदि. विभिन्न भंगोसे दारीर यना हुआ हैं और ये सब अग धूरे धरीरकी रक्षाके लिये निरस्तर सचेष्ट रहते है उसी प्रकार आरयोंनि पूरी सषटिकों, सब प्रकारकें जा चेतन पदा्थोको, उनके गुण सरय, रन, नस 2, जन्मे) कर्म और स्वभाव के अनुसार उन्द्द चार भाग या वर्णामि विभक्त कर दिया 1 इसके अनुसार केवल मनुष्य ही चार घ्णके नहीं हुए घरन्‌ पु, पश्ची, चक्ष, जल, भूमि, रच, काठ, सप चार वर्ण के हुए--घाहाण, क्षपिय, वैद्य गौर झूद । यदि कोई मनुष्य दाथरें दुयर रद्द जानेसे था कट लानेसे दाथका काम पेरसे करने लगे तो उसके दरको कवर दाथका काम करने मायसें दम हाथ नहीं कहने लगते, दसी प्रकार यदि किसी घर्णका पुरुष कसी दूसरे बर्णरे योग्य काम करने लगे तो उससे उसका चरण नहीं घदल जाना क्योकि पारम्परिक सस्कारके कारण उसकी जो मानसिक बन जाती है, वही घर्ण-च्य वस्था में सधघान समझी जानी है, क्रेवल चाहा झाचरण भौर व्यवसाय उसमें नदीं भा जाता 1 यदि धोडेखें बोझ दोनेका काम लिया जाय तो चढ़ गघा नहीं कहला सकता और यदि गधे या सचरसों रमरममें जोत दिया जाय सो वह घोड़ा नहीं कइला सकता 1 घोड़ेका घोड़ापन उसके जन्म-सस्कार पर अयलम्वित रद्द भले ही चदद गघेसे भी अधिक टुर्बल और मदन क्यों न हो गया हो। कार्य-बिभाजन कद इस मकारकी ब्यवस्थासे गुण कर्म-स्व भा वके अनुसार मानव समाज- की चार मुल्य मान ली गईं-चीद्धिक, शारीरिक, भाथिक और सेदारसक 1 इस प्रकार काम बट जानेसे सब लोग अपनी रुचि,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now