प्रगतिवाद | Pragativad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रगतिवाद | न~~ ~ ~ ~^ ^^ ^^ ~ ^^ ^^ ^~ न करके अपनेको समाज-संबर्षसे ऊपर ( 29०४८ 38910 ) चनानेकी व्यर्थं चेष्ठा करता है, तो इससेउसका दृष्टिकोण और श्रभिंव्यक्ति दोनों ही संकु- चित, कीस और निःशक्त टंगि । किन्त॒.यदिं वह.उन शक्तियोके साथ श्रपनी रागात्मक.सदानुभूतिका श्रनुमव करता ई, जो समाजको वदलनेमे सव्से द्रधिक क्रियाशील है, जेसे . श्रमिक - कृकर वगं या समाजवादकी शक्तिर्या तो वह न: केवल :'जीवनकों एक व्यापक दृष्टिकोणुसे देखसकेगा या ' उसकी द्रमिव्यक्तिकी प्राण-शक्ति तीतर होगी; बल्कि ` वह समाज॑में नये जीवनकी उद्धावना रौर वरिक्रासक्रा श्रनुभव.भी प्राप्त करसकेंगा, जिससे उसकी कला जनतासे प्राण-संम्बन्धित होसकेगी। इसका रथ यह हुभ्रा कि श्राजके लेखक को, यदि वह समाजक्री प्रगतिक्रा श्रंग वननां चाहता है तो समाजकी शक्तियों उनके कार्यों, उनकी विचारि-घाराश्योंसे पदंले परिचय प्राप्त करना चार और स्वयं: उसे 'सामाजिक . निणये कर! अपना दृष्टिकोण निश्चित करलेना चाहिए. । उसकी रचनॉत्रोंमें इस दृष्रकोणकी जो कलात्मक श्रर्भिव्यक्ति दोगी, वदी उनकी विचार-वस्तु होगी | संमाजकी श्रावश्यकताग्रोकी पूवं चेतनासे -दी. सच्चे प्रगतिवादी साहित्यकी खष्टिः सकती ई, उनकी श्रन- मिक्ञतपि नदीं 1; ~... . अतः प्रगतिवाद लेखक या कलाकारके सामने दकोणः का प्रश्च उठाता दै] दम विभिन्न रूपात्मकर' समाजे सम्बन्धो, सामाजिक वर्गो, राग- के प्रति जो दृष्टिकोण रखते हैं वह प्रगतिशील है ्रथवा रूदिवादी, राष्टीये और ग्रन्तर्सष्रीय राजनेतिकं प्र्नोपर ' हमारा ` दृष्टिकोण प्रगतिशील है या संचितः येह सव जटिल गुत्थियाँ प्रगतिवादकेलिएं महत्व रखती हैं । प्रंग- तिवाद स्वमावतः शोषिंत मान॑वताका सांस्कृतिक दृष्टिकोण होनेके कारण इन प्रशोपर अपना विंशेष संत'रखता है ।प्रगतिवादी कलाकार ` श्रपनी र्चेनाश्रोंमें इसी िंप्रिकोण” को शमिव्यक्ति देते हैं। प्रगतिवादके नये दृष्टि कोण के अनुरूप ही उसकी श्रमिन्यक्ति भी होती दै । प्रगतिवादकी विचार तस्तु ( (००९०४ ) श्रौर सूपःविधान्‌ (072 ).का समुचित समन्वय सामाजिक, यथार्थवाद?: (5०081 ‰ ९1157.) की -धारामे. होता-दैः। अतः. ' सामाजिक, यथार्थवाद? की धारा दी :साहित्यमें. प्रगतिवाद: है: । ;: :: ` प्रगतिवादके विरुद्ध झाज़ हिन्दी-साहित्यंके कृतिपय तेम जो मरतिः ' ˆ ७ ^~




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