प्रगतिवाद | Pragativad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रगतिवाद
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करके अपनेको समाज-संबर्षसे ऊपर ( 29०४८ 38910 ) चनानेकी व्यर्थं
चेष्ठा करता है, तो इससेउसका दृष्टिकोण और श्रभिंव्यक्ति दोनों ही संकु-
चित, कीस और निःशक्त टंगि । किन्त॒.यदिं वह.उन शक्तियोके साथ श्रपनी
रागात्मक.सदानुभूतिका श्रनुमव करता ई, जो समाजको वदलनेमे सव्से
द्रधिक क्रियाशील है, जेसे . श्रमिक - कृकर वगं या समाजवादकी शक्तिर्या
तो वह न: केवल :'जीवनकों एक व्यापक दृष्टिकोणुसे देखसकेगा या ' उसकी
द्रमिव्यक्तिकी प्राण-शक्ति तीतर होगी; बल्कि ` वह समाज॑में नये जीवनकी
उद्धावना रौर वरिक्रासक्रा श्रनुभव.भी प्राप्त करसकेंगा, जिससे उसकी कला
जनतासे प्राण-संम्बन्धित होसकेगी। इसका रथ यह हुभ्रा कि श्राजके लेखक
को, यदि वह समाजक्री प्रगतिक्रा श्रंग वननां चाहता है तो समाजकी शक्तियों
उनके कार्यों, उनकी विचारि-घाराश्योंसे पदंले परिचय प्राप्त करना चार
और स्वयं: उसे 'सामाजिक . निणये कर! अपना दृष्टिकोण निश्चित करलेना
चाहिए. । उसकी रचनॉत्रोंमें इस दृष्रकोणकी जो कलात्मक श्रर्भिव्यक्ति
दोगी, वदी उनकी विचार-वस्तु होगी | संमाजकी श्रावश्यकताग्रोकी पूवं
चेतनासे -दी. सच्चे प्रगतिवादी साहित्यकी खष्टिः सकती ई, उनकी श्रन-
मिक्ञतपि नदीं 1; ~...
. अतः प्रगतिवाद लेखक या कलाकारके सामने दकोणः का प्रश्च
उठाता दै] दम विभिन्न रूपात्मकर' समाजे सम्बन्धो, सामाजिक वर्गो, राग-
के प्रति जो दृष्टिकोण रखते हैं वह प्रगतिशील है ्रथवा रूदिवादी, राष्टीये
और ग्रन्तर्सष्रीय राजनेतिकं प्र्नोपर ' हमारा ` दृष्टिकोण प्रगतिशील है या
संचितः येह सव जटिल गुत्थियाँ प्रगतिवादकेलिएं महत्व रखती हैं । प्रंग-
तिवाद स्वमावतः शोषिंत मान॑वताका सांस्कृतिक दृष्टिकोण होनेके कारण
इन प्रशोपर अपना विंशेष संत'रखता है ।प्रगतिवादी कलाकार ` श्रपनी
र्चेनाश्रोंमें इसी िंप्रिकोण” को शमिव्यक्ति देते हैं। प्रगतिवादके नये दृष्टि
कोण के अनुरूप ही उसकी श्रमिन्यक्ति भी होती दै । प्रगतिवादकी विचार
तस्तु ( (००९०४ ) श्रौर सूपःविधान् (072 ).का समुचित समन्वय
सामाजिक, यथार्थवाद?: (5०081 ‰ ९1157.) की -धारामे. होता-दैः।
अतः. ' सामाजिक, यथार्थवाद? की धारा दी :साहित्यमें. प्रगतिवाद: है: ।
;: :: ` प्रगतिवादके विरुद्ध झाज़ हिन्दी-साहित्यंके कृतिपय तेम जो मरतिः
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