प्राचीन भारत | Prachin Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वश तु कर त प्रत्येक देश के इंतिहास पर उसके भूगोल का प्रभाव पढ़ता है । जहाँ तक अविभषत भारत का प्रश्न था उसकों संम्यता युग-पंगान्तरों से स्वतंत्र रूप से इतिहास पर... विकसित होती रही । उत्तरी पर्वतों को मपयंकर रुकावटों और भूगोंत का... देठ्िग के समुर्दों के कारण भारत शेष रिंवव से प्रायः प्रभाव पृथक रहा । फलस्वरूप उस पर अधिक विदेशों प्रभाव नहीं पड़ सका । हिमालय पश्चिम से पूर्व तक लगगग १६०० मौल लम्बी आर ५० सोख चौड़ी एक दुदरी दीवार है । पु्वें में पत्कोई नागा और लुशाई की पहाड़ियाँ उनके घनें जंगल जाने जानें में जावा डालते हैं । पॉइ्चमों छोर पर कुछ दर अवश्य हैं जैसे लेवर और बोलन के जहां से होकर विदेशी आतें थे । दक्षिण को और दाताब्दियों तक समूद भारत में आासानों से आाने-जानें में रकावट डालता रहा । किन्तु वाद में नौ-विद्यानजषेत्र में पर्याप्त प्रगति हुईं । फिर तो महू समुद्र व्यापार के लिए सुगम मारे ही बन गया । १४९८ में वास्कोन्दान्गामा के नेतृत्व में पुर्त- गालो लोग सब से पहिले समुग्रीं रास्तों से भारत आगे । उसके. बाद डभ फांसीसी जौर अंप्रेस जायें । ये सभी बहुत समय तक भारत में अपना प्रमुत्वं जमाने के लिए आपस में संघर्ष करते रहें । इस प्रकार कुछ मिलाकर भारत की भौगोछ़िक पूथक्तता के कारण यहाँ की सम्यता पर अधिक विदेशी प्रभाव नहीं पड़ा । भारत के आकार की विधासता को भी इसके इतिहास पर प्रभाव पड़ा ।




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