प्राचीन भारत | Prachin Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.91 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी - Dr. Radhakumud Mukarji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वश तु कर त प्रत्येक देश के इंतिहास पर उसके भूगोल का प्रभाव पढ़ता है । जहाँ तक अविभषत भारत का प्रश्न था उसकों संम्यता युग-पंगान्तरों से स्वतंत्र रूप से इतिहास पर... विकसित होती रही । उत्तरी पर्वतों को मपयंकर रुकावटों और भूगोंत का... देठ्िग के समुर्दों के कारण भारत शेष रिंवव से प्रायः प्रभाव पृथक रहा । फलस्वरूप उस पर अधिक विदेशों प्रभाव नहीं पड़ सका । हिमालय पश्चिम से पूर्व तक लगगग १६०० मौल लम्बी आर ५० सोख चौड़ी एक दुदरी दीवार है । पु्वें में पत्कोई नागा और लुशाई की पहाड़ियाँ उनके घनें जंगल जाने जानें में जावा डालते हैं । पॉइ्चमों छोर पर कुछ दर अवश्य हैं जैसे लेवर और बोलन के जहां से होकर विदेशी आतें थे । दक्षिण को और दाताब्दियों तक समूद भारत में आासानों से आाने-जानें में रकावट डालता रहा । किन्तु वाद में नौ-विद्यानजषेत्र में पर्याप्त प्रगति हुईं । फिर तो महू समुद्र व्यापार के लिए सुगम मारे ही बन गया । १४९८ में वास्कोन्दान्गामा के नेतृत्व में पुर्त- गालो लोग सब से पहिले समुग्रीं रास्तों से भारत आगे । उसके. बाद डभ फांसीसी जौर अंप्रेस जायें । ये सभी बहुत समय तक भारत में अपना प्रमुत्वं जमाने के लिए आपस में संघर्ष करते रहें । इस प्रकार कुछ मिलाकर भारत की भौगोछ़िक पूथक्तता के कारण यहाँ की सम्यता पर अधिक विदेशी प्रभाव नहीं पड़ा । भारत के आकार की विधासता को भी इसके इतिहास पर प्रभाव पड़ा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...