बड़ा आदमी | Bada Aadmi

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Bada Aadmi by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न (सः वडा श्रादमी १५. म जसे ही श्रपने कमरेमें पहुंचा, वैसे ही मुभ लगा कि यह प्रादमी रहस्य मय है ! क्योकि उसने मुभसे संतोष के वारे मे किसी तरट्‌ की चर्चा नहीं की । श्राखिर उनका इकलौता बेटा गुम हुआ है श्र वह भी ऐसी भयानक धमकी देकर, श्रौर उनके चेहरे पर ऐसी शांति? प्रौर हा, मैंने जब-जव कार ~ में उनपर हृष्टिपात किया तब-तव उनके चेहरे पर कठोरता परिलक्षित हई ) कभी-कभी वे मन ही मन हंस पड़ते थे जिससे उनके चेहरे पर कठोरता की † श्र (भ जगह क्षणिक कोमलता, वह्‌ भी उपहास-भरी, दिलाई पडती थी ग्रौर उनकी मूंछें थोड़ी ऊपर उठ जाती थीं । विचारों की तीव्रता में मैं कुछ देर रनान करना भी भुल गया । ज्योंही मैं स्तात करके बाहर निकला त्योंही वे गंभीरता से वोले, “मैं दो-तीन घंटे बाद ग्राऊंगा । भूल लग जाए तो खाना खा लेना ।” वे चलने लगे । मुझे उनपर गुस्सा भ्रा रहा था कि वे मुकसे उस विपय पर बातचीत क्यों नहीं करते जिसके लिए उन्होने मुभे बुलाया है ? सहसा वे रुककर बोले, “संतोष के लिए अधिक चिंता करने की कोई श्रावश्यकता नहीं है । बहू कायर श्रावमी है । सरनाश्रौर मेरे अस्तित्व से पृथक्‌ होकर खुद के श्रम से श्राजीविका के लिए कुछ उपाजेन करना उसके लिए संभव नहीं है । वह बड़ा दुरबेल है । मैं तुम्हें कहता हूं कि वह्‌ दस-पन्द्रह दिन इधर-उधर धूमकर्‌ वापस श्रा जाएगा । तुम नहीं जनत-- जिन्हें परोसी हुई रोटी मिल जाती है, वे क्यों पकाने के लिए कष्ट करेंगे ? ** मैं तुम्हें यह रुपण्ट रूप में कह देना चाहता हूं कि श्रगर मेरी पत्नी एक लड़का और उत्पन्न कर देती तो मैं ऐसे गलत कदम उठानेवाले सर्वधा सूखे लड़के को वापस घर में पांव भी रखने न देता ।” बात की समाप्ति पर उनके चेहरे पर क्ूर-विकृत मुस्कान की कलक-सी दीखी जैसे कुटिल प्राणी के चेहरे पर एक साधारण झादमी से बातचीत करते समय दीखती है । फिर जैसे वे चौंककर वोले, “तुम्हें इस बात के लिए श्राइचयं होगा कि फिर मैंने तुम्हें यहां बयों बुलाया है ? इसमें श्राइचयं की कोई बात नहीं है । यह एक बहाना है, सवंथा एक साधारण बहाना, अगर तुममें झनुभूति नी प्रखरता व समफ है तो तुम्है यह तय कर लेना चाहिए कि तुम इसे लेकर अखबारों में चर्चा नहीं करोगे,




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