प्रसाद और उनके नाटक | Prasad Aur Unke Natak

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Prasad Aur Unke Natak by केसरी कुमार - Kesari Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जयशंकर प्रसाद इस पथ का उद्देश्य नहीं है श्रांत-भवन में टिक रहना । किन्दु पहुंचना उस सीमा पर जिसके आगे राह नहीं ॥ प्रसाद्‌ हिन्दी के जागरूक युगप्रवतकों में भारतेन्दु के बाद जयशंकर प्रसाद दी एक ऐसे सवंतोयुखी प्रतिभा-खम्पन्न व्यक्ति हुए जिन्होंने हिन्दी- साहित्य के सभी आदत अंगों पर पट्टियाँ बाँघी । भारतेन्डु ने भारती की वीणा रची थी; मद्दावीर प्रसाद द्विवेदी ने मीड़ कसी और नवयुग की बृह्यी-मेथिलीशरण शुतत, प्रेमचंद और प्रसाद-ने उसमें स्वर-लद्दरी का प्रकपन भरा । आधुनिक सादित्य के इन तीन प्रजापतियों में से प्रथम दो का सम्बन्ध जनसमूदद के उत्पीड़न से अधिक रद्दा है जब कि तीरा भीड़ की इछचख से दूर खंडहर की धूल में एकान्तर्प से हीरे चुनता रहा । यद्दी कारण है कि मैथिलीशरण और, प्रेमचंद को जितनी प्रतिद्धि मिली उतनी प्रसाद को नहीं । किन्तु जनन्छम्पकं के कारण जिस उपयोगितावाद ( एप॥८&तं250 ) से गुप्त और प्रेमचंद की कछा धूमिल रही है उससे प्रवाद की कृतियाँ अधिकांशतः अछूती भी रद्दी हैं । अतः विशुद्ध साहित्यिक इष्टि कोण से देखने पर प्रसाद की कला दी साघना के शीष पर वैदी नजर आती ई ।




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