पंत और उनका गुन्जन | Pant Aur Unaka Gunjan

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Pant Aur Unaka Gunjan  by केसरी कुमार - Kesari Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न रहा अध्यात्म या दशन । सो वह छायावाद का सब से कमजोर पहलू है । अध्यात्म के लिए जिस श्रद्धा ओर विश्वासपू्ण साचना की अपेक्षा होती हैँ वह उतके पास न थी। वाणो ओर कतत त्व के अनेक्यके कारण उनका अध्यात्मवाद विध्वसनीप नही था ओर इस असगलि नें उस समय अखबा रो में कार्टू्नी के लिए काफी मसाछा बिया था । बाद मे वे स्वय भी भीतिकता से समझौता करने छंगे । उनकी सेद्वातिक अध्यात्म का परीक्षण आज भी उसे काव्यप्रसाधन ही मानने को वाध्य करता है | महादेवी वर्मा की बीण भी हूँ, रागिणी भी हूँ, दूर तुमसे ह असण्ट सहागिती भी हु एक सुन्दर भावपूर्ण गीत है जौर निराला की तुम जोर में! शीपक कविता वेदात के अद्वेतवाद और शकराचाय के सिद्धातो का प्रतिपादन करती है ओर इस कारण उसका काव्य सोदय भी एकरसता में पठकर भमिंचित मछिन हो गया हैँ । पर निराला की उसी कविता की प्रतिध्वनि ओर शैली में जब महादेवी जी कहती हे फ्रि- कंम्पन हूँ, तू करुण राग आसू हूँ, तू हैं विषाद, भदिर। तू उसका खुपतार छाया तू उसका अधार मेरे भारत मेरे विशाल (थामा) तो हम भांचक रह जाते है। बहा की अद्वेतानुभूति की बात समझ सकते है पर स्थूल पर अहैत का यह आरोप, देशभक्ति के साथ शराब और खुमार का यह रूपक तो अध्यात्मवाद की एक परोडी-सा लगता हे! दुर्वासा आलोचक (|) शुक्‍लरू जी के उस कथन में भी कुछ वजन या कि छायायाद अभिव्यजता की एक शैली था। पत जी के 'मोर्स निमत्रण' की साथ जब हम महादेवी जी की -- कुमुद-दल के वंदना के दाग को, पोछती जब आसुभो से रब्म्ियाँ, 1 न धं७ 25 23 -य«»




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