पंत आधुनिक कवि | Pant Aadhunik Kavi

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Pant Aadhunik Kavi by केसरी कुमार - Kesari Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५३ छायावन की रास घरती पर हुई थी । मिद्टी की प्रतिमा ने क्षणिक दिन के आलोक में जीवन का लास्य रचा था। आज भी उसके अलकों में सलयज बन्द है। उसकी वेणी में अग॒द धूम की इ्याम लहरियाँ उलझी हे । कह अधरों में अमंद राग भरा है । उसकी आँखों के लाल डोरों में विहाग रागिनी शूल रही है । वह अलसाई सी है । अध्यात्म या राजनीति की छूडी से उसे न छेडिए । वह बडे सुकुमार हाथो की पत्नी हूं । 19० अमन; ००४७ ००-३४ ९----+९% #जनयामा ढ० जी जमा कडाओ,




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