देशभक्ति की पुकार "लाला लाजपत राय के विचारों का संग्रह" | Deshbhakti Ki Pukaar "Lala Lajpat Ray Ke Vicharon Ka Sangrah"

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Deshbhakti Ki Pukaar "Lala Lajpat Ray Ke Vicharon Ka Sangrah" by नारायण प्रसाद अरोड़ा - Narayan Prasad Arora

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९) के हामी: हैं । किन्तु इनकी संस्या इतनी कम हे कि इनके मत चः प्रभाव चूटिश सरकार पर नाम मात्र को ही पड़ता है । (२) सिफ अर बूटेन के सार्यवादी ओर श्रमजीवी दल से ही. झन्तराएीय न्याय की झपील करने से ऊछुछ लाभ दो सकता है । वहां के उदार दल चालों में भी कई सच्ची ओर महान त्ात्साय है ।।पर अधिकांश उनसें कुरिल साम्राज्यवादी!।है। चर्कि मेरी समझ में इनका साम्राज्यवाद परतन्त्र देशों के हक पे शलुदार दल के नेताओं से भी अधिक हानिकारक हे | अलुदार या टोरी दल चाले सपद शूट का संहारा चह लेते । ये पन्य राजनीति में वड़े सु फट छर स्पषटवक्ता होसे दूध-पनी वाली उदारता स्वतन्त्रता के लिए लड़ने वासे देश के लिप झत्यन्त सयादद्द हैं । पराघीन देश तो यह चाहता है लि उखको अपने शासको के दिलकी बात मालूम हो जाय ताकि अपना मागे उस्म पकारः निधारित कर ले) येय लेग पनी श्राशिक नीति मे अधिक नेकनीयत साधित हये ई। दौत्य दल पक साम्राज्यबादी है । हां, उदारों की तरह झजुदार' दल वाले सिद्धान्त में ही पजासत्ता के. भमी जनने का होम नही रचते । उदार कहलाने चाले झंग्रेज न्याय, स्वतन्त्रता घर परजाखन्ता को बेहद चकदास दिया करते हैं | किस्त जब कम करने का मौद्या आता है तब ये कट्टर अनदारों से थी निर जाते हू)




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