परमात्मप्रकाश प्रवचन | Parmaatm Prakash Pravachan

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Parmaatm Prakash Pravachan by महावीर प्रसाद जैन - Mahaveer Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाधा १५७ ६ द्मप्पा परह श मेलविख मणु मारिवि सहसत्ति। सोवड जोये किं करइ जासु ण एदी सत्ति ॥१५८॥ यट चात्मा सनको शीघ्र मारकर, वशे करफे परमात्मा यदि अपनेको नहीं मिल्लाता तौ हे शिष्य ! जिसकी ठेसी शक्ति नहीं ह बह योग द्वारा क्या कर सकता है ? मनवों मारना व जीतना, इस मन्के वश झपनेको कायर नहदीं बनाना, यह एक बड़ा तप है। जिसे कहा है इच्छा निरोध, इच्छाका रोक देना । सो जो ऐसा नहीं कर सकता उसका योग क्या करेगा अर्थात्‌ व्यावहारिक योग जितनी धामिक क्रियां ई दशन, पूजनः स्वाध्याय, ष्यानः प्राणाय,म, एकासन, र जितने काम है ते सव योग कहलाते हैं । घर्मको पानेके लिए जो यत्न कि.ए जाते हैं उन यत्लॉंका नाम योग है । उन पुरुषोंकी योग क्या कर सकता है जिनका मन श्रपते चशमें नहीं है । यद्‌ सनिकल्प आत्मा यद्वि परमात्मामे नी मिलाया जाता यदा किसी दुसरे परमारंमाको मिलाये जाने की बात नहीं कही है किन्तु यह कहाजा रहा है कि यह्‌ सबिकर्प रूपसे उपस्थित हुआ निज आत्मा घर स्वभाव हृष्टिसे झनादि झनन्त च्रदेतुक विराजमान शुद्ध चेत्तन्यरवरूप भगवानमें झपनेको नहीं जोडते हैं तो रसका 'छर धार्सिक क्रियावोंकि योग का क्या नफा सिलेगा 7 लब तक यह झपनी घुनका पक्का नहीं हो सकता तब तक यह पने कार्यम सफल नहीं होता । जीकर करना क्या हैं? धन जुड़ गया ज्ञाखोंका, करोडोका छाखिर उससे मिलेगा; क्या ? सत्यु होरी क्ले दी जायेगा खोर 'वेले ही ससारके सुख दुःख भोगेगा | क्या मिलता है यहा किसीके व्यवद्दार करने से, किसी अनुरागभे प्रेमालापसे अपना समय खो देनेसे इस जीवके दाथ कुछ नही चता है; वस्कि कुछ ही समय वाद लो रागवश समय खोया है उसका इसे पश्चाताप होता है इस 'ात्माकों अर्थात्‌ सकत्प विक्हप 'करनेकी स्थितिमें पढ़े ए इस श्रात्माको निधिकहप परमात्सस्वभावमे जे जाइये तो य॒ क उपाय है 1 यह परमात्मतन्तव जो अपने जापसे निरन्त र स्वभावरूपसे बस रहा है बह विशुद्ध ज्ञान दर्शनस्वरभावी है । बहां ख्याति; पूजा ज्ञाभ छादिक किसी मी मनोरथमे यह्‌ उपयोग फसा नौ है, विसी मौ विकल्प जाले यह्‌ उपयोग रमा नहीं दै, देसे निशुद्ध ज्ञानार्क दर्शनात्मकं परमात्मा में जिसने अपने आपको सहदीं लगाया; योग नहीं किया त ४ स च तक उख पुरुषे कदत योगसे क्या नफा हो सकता है ! वि करनेंके लिए प्राणायाम करे; घंटॉकी समाधि लगाये; इतने पर भी इस




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