बालाविनोद | Baala Vinod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) तो परमेश्वर वस्र होजाता हे। मनुष्य का वश होजांना क्या वड़ौ वात है जब स्त्री यो वन मन से प्रीति करेगी तो वह भी श्रावश्य ही उसका हो रदेगा, दूसरे यह भी स्त्री का लाभ है कि ऐसे वर्वात्र से प्रीति में रुत्ततां पड़ने नदी पाती झौर खुदोग उसका वनां रहता है, नददीं ते पति की रुचि दृटी श्रौर शोभो इसकी मिरी, तीसरा गुण यह है, कि न पुरुप कहीं झटकता श्रौर त: स्त्री का मन विचलता है; चौथे पति के व्यमिचार में पड़ने से जो धन दर जाता चह बच रहता है जे उसके श्रौर उसी की श्रौलाद फे काम श्रोता दै श्रौर सव से वड़ा पांचवा लाम यह है कि ऐसे श्राच।र से खी का परलोक भी खुघरता है । देखो मित्रा श्त. ८७ पतिग्रियदिते युक्ता स्वाचारा विजितेन्द्रिय । सेह कीतिंभवाप्नोति येत्यचानु्मां गतिम्‌ ॥ श्र्थ-जो स्त्री पति से प्रीति करती उसके हित मे लगी रहती शरीर श्रच्छे श्राचार और इंदियों को वश मे रखती है बह संसारम सुश्षीतिं श्रौर परलोक मे उत्तम गति पाती है ॥ मचस्मृति. श्र,५ श १६५ ॥ पर्ति यानाभिचरति मने! वाग्देद संयता । सा भव लोकमाप्नाति सद्धिःसाध्वीतिचाच्यते || झर्थ -जो स्त्री पति का श्रपमान नहीं करती तन मन से भक्ति में लगी रददती है बद्दी पतित्रता कहलाती श्और झंत होने पर पचिलेक पाती है ॥ शौर पेसी स्त्री की उपमा लदमी से दी है जेला यह श्तक दै झनुकूला-न चाग्दुष्रा दक्ता सघ्यी पतित्रता । एमिरेब गुणुंयु का श्रीरेव स्त्री न संशय: ॥ झर्थ-जिस-स्त्री में ये गुण देते. किं श्रपने पति की श्रोबा-




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