राजकोट चातुर्मास | Rajkot Chatumarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री साधुमार्गी जैन - Shree Sadhumargi Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६). , सम्य की श्राति
मन न ~~ ^ 4 ०09 ~ ~ ५
` श्राचरण का निषेध. किया है. आजकल साम्प्रदायिकतो के
श्राग्रह के कारण एक-दूसरे की न्याय-सखगत ओर शाख सम्मत
चात मानना भी कठिन है ! किन्तु पराचीन टीका के आधार से
यदि इनका एक असली अर्थ समझा जाय तो पता लगे कि
दने मियेध का क्या उदेश्य है । दमने जो पन्द्रह कर्मादार्नो
की व्याख्यां की है वह हरीभद्रीय टीका के आधार से की है ।
हरीभद्रीय यैका पर जेनों का वहतं ्राघार दै । यद्यपि हरीः
भद्रीय से कुछ साम्प्रदायिक मतसेद है फिर भी उनकी रीका
को भ्रथेज्ञान के लिए चुत आधार-भूत साना जाता है ।
पन्द्रह कर्मादानो का संकुचित र्थं किस प्रकार किया
जाता है उसके लिए एक कैसवाणिन्जे' शब्द को ही लीजिये ।
कई लोग केसवाशिज्जे का अर्थ, ऊच व ऊनी वस्त्रों का व्यापार
करना कहते हैं । और. कई लोग तो इनसे भी झारे चढ़कर
सूत व सृती वस्नो ऊ व्यापार को भीं केशवाणिलज्य सें शामिल
करते हे । इनकी दलील है कि कपास भी एक प्रकार के पधे
का ही केश है । इस प्रकार संकुचित अर्थ किया जाता है ।
किन्तु हरीसद्वीय टीका में केशवाणिज्य का शर्थ करते इुए
फेश शब्द को छक्तणा माना जाता है. । अर्थात् उच्तण से केश
` शब्द् का अर्थं केवल केश न करके केशवाली दासियां किया
गया है । पहले जमाने में उप्दर केद्योंवाली दालियों को एक
देश से इसरे देश में बेचने का धंधा किया जाता था । ऐसा
धधा करना श्रावक कै लिप वार्जत है। मुसलमानों की हृद्दीसों
भी इंसान का वचना गुनाह माना. गया दै 1 श्राज की
हमारी सरकार भी दासदासी के विक्रय को श्रपराध मानती .
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