हिन्दी काव्य शास्त्र का विकासात्मक अध्ययन | Hindi Kavya Shastr Ka Vikasatmak Adhyan

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Hindi Kavya Shastr Ka Vikasatmak Adhyan by शान्तिगोपाल पुरोहित - Shantigopal Purohit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७ ) भाषा भूपशा-गयय म व्याख्या 1 मत्तिसम, यसकारद प्रभाव { भूपणए-पावर यवि सर्कल भाविके ] देव-युग, मौर विनेता 1 काव्य दाल निष्पण-प्यमय । सस्व साचा छो उद्धरणी 1 कुलपति. सिध-टीदाएं-विहदारी सतसई, कवि प्रिया भौर रसिक प्रिया की टोक्ाएु । रीति प्र थ प्रणयन-श्रीपति वीर, कण्ण क्वि ( बिहासै सतस्‌ टीका }, रसिक सुवति 1 मिखरीदास-स्ववीया लक्षण हाव-माव लक्षण- सादित्य दपग्ग की छाया-अ त्यातुप्रा्त-मौलिक निवेचन । दलगविराप मोर बशौधर- वेत्र रटनाकर 1 दूनहनाया ६ यनोदा न दन~सस्कन दिःदौ मिधधरण~वव नायि भे, रसिक सोवि । भयकषि भौर याचाय । निष्क्प-~नायक-~नापिका भेद, लकार वणन, रस विवेचन गुण दोप विवेचन, प्रकति चित्रण, सद्धातिक घ्याप्या । मौलिक उदुमावना्े व परम्पर! निर्वाह । निष्वप | द्वितीय प्रकरण -~भारते दु काल पृष्ठ ८६ से १२२ ८) माण-सनपप पसव -- गग्नेगी का आगमन, शासन और भाषा सम्ब घी नीति, स्वतत्रता सप्राम-मग्रेजों की नीति, ईसाई धम प्रचारक गौर हिंदी | तत्कालीन आालोचनान- सशक्त के परिपाश्व मे-टीका साहित्य, शास्त्रीय ततरे 1 माधार्‌ । भग्रेजो के पररि पाव म~मोलिक्ता भौर नवीनता का ग्रह, नालोचरो कौ प्रतिस्पणो, सिद्धान्त प्रतिपादन, पास्वीय तत्व प्रजो सिढात । पत्र पतरिकारये, प्रयोगास्मक आलोच नाये) 1 मे मरे जो का सहयोग ) अनुस्थान भौर नागरी प्रचारिणी संभा 1 माष दण्ड-अ तर 1 केविगो कौ जोवनिया-रैतिहासिक रकेण -लाड ज मोफ पौडटज । आलोचना जोर थ प्रेजी । बप्रेजो के विराभ चिद्। निवघ नौर्‌ लालोचना । निष्क्प । (ख) माप-आलोचक कृतियाँ -- भारते दु बावू हरि द्व-सस्वत के पारिपाएद में, आप्रेजी के परियाश्व में, जीवनियाँ, “नाटक ” निष्वप-सोलिक्ता । बद्रीनारायण चौषरो-दौष दशन, सयोगिता स्वयवर, सस्कृत बे ग्रे जी परिपाइव-निष्कर्ष 1 पढ़ित माल कृष्ण मटू-बग विजेता, अनुवाद, आलोचना, आालोचनात्मव' लेख, शास्त्रीय तत्व, निप्कप । पढ़ित गंगापरसाद अग्निहोबी-समालोचना, निष्यप, शास्त्रीय तत्व» मौलिकता अय




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