प्रज्ञा प्रदीप | Pragya Pradeep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वीप समूह है । वसेसू मठयद्टीप है, ताम्रपण श्रीठवा, सागद्वीप निकोबार द्वीप समूह है, वारुण बोनिओ द्वीप है, गमस्तिमान ( सायद सुवणद्वीप सुम्मझ् फुम्मो--'सुमावा' हो ), “सौम्य' और “गधर्व' वा पता नहीं लगता (शायद “बाली' हो), और कुमारी दीप था मारत । तमिल साध्य में भी कपाटपुरम्‌ पता नही कहा समुद्र में लुप्त हो गया । मुप्तवाल यानी पुराणकाल वे वाद धीरे-धीरे इस विशाल भुभाग वे कई हिस्से अलग-अलग हो गये । जसे सरस्वती नदी लुप्त हो गई, गाघार कदहार बने गया । भोट देश तिब्बत । और इसी प्रकार से कितने वितने अग वग बलि उपविभाजन होते चले गये । श्रह्मावत से युरक्षत्र, भरस्य, शूरसेन, पाचाल जनपद वने, जो मनु वे समयमे “मध्यदेश” कहलाता था । सीवीर (सिंध) मीर आनत (मूजरात), कयोज ओर कपि, भूजवत ओर वर्हीक कभी भारत वे भग थे। परन्तु उस सारे इतिहास में जाने से वेव यही मिलेगा वि अगागी भाव से आज भी वई भारतीय भ्रमाव, भगन।वदोंप, जीवित लोक्-नृत्य परपराएं, उपासनापद्धतियाँ, भाषा सहवतित्त्व वहाँ मिलता है। चाहे वे इदोनेसिया के व्यक्ति नाम हो या बाली के नृत्य, अगकोरवाट और थोरोडुदीर के माददिर हा, या तिव्वती लिपि और बौद्ध भित्िचित्र, वासियों (अफगानिस्तान) व विराट बुद्ध हो या नेपाल वे पशुपतिनाथ--ऐसा बहुत कुछ मध्य पूव और सुदूर पूवम ऐतिहामित' सास्शतिव साक्ष्य फंला है जो सिद्ध वरता है वि भारत से अलग+ थछग होने पर भी वहाँ भारत मे ततु अभी भी अवधिष्ट हैं । राजरीसर ने 'काव्यमीमासा ' में ठीव ही कहा दि क-यावुमारीसे विदु सरोवर तक (यानी मानसरोवेर तक) भारतका चक्रवतिक्षेत्र या।'' अब स्थिति भिन्न है । मानसरोवरजाना होतो षीनियो से अनुमति-पय तेना पडेगा । तक्ष- दिला वे लए पाविस्तानियों से । वाभयां वे लिए अफणानियी से । स्िहगिरी या सिभिगियाङै लिए थी छवा वालो से । डार्किय देवी क्षेत्र ( ढाका ) वे लिए बागखादेदियोसे। ओर यह सूची लबाई जा सकती है । यह तो हुआ राजनीति वा भूगोल पर आक्रमणे । प्र हमारे देश के प्रवासी और उन (षडोसी) देश मे भारत में आनेवाने प्रवासी लिसते और वहते नहीं अधाते वि. लाओस मे रामक्था है, इदो नेसियाई माँ दरा में महाभारत के पात्रा के “वायाग' (काप्ठ-पु्तलिका नुत्य ) होते हैं । सिहल और नेपाल, घाली और सुमात्रा वे नाम तब इतने भारतीय हैँ भडारनायक्ग, जयवद्ध न, प्रेमदास, सुकण, नरोत्तम, सिंहानुक, रामवाति, निश्शाक, महं द्र, धरिभूवन आदि। यानी कुछ ऐसा है जो चाह नाम रूपात्मक ही क्यो न हा परतु बह शेप है। वगूला देश की स्तिया शख की चूडियाँ पहनती है, और सिंदूर भी लगाती है । वहा ने और भारत मे छोकगीत और लोव नाटया में विलक्षण समानताएं हैं। यानी हम विभक्त होकर भी पुन बही न कही एक ही हैं। सिफे हमारी तथावधित 'राष्ट्रीयता' या नागरिकता भिनक्र दी गई है पर लदमीप्रसाद देवकोटा (नेपाल) की बबिता! काजी नजरुल इस्लाम ( जो बाग्ला देश में भरे) से बँसे भिष्न है * या फैज़ और फिराक में कया कोई समान सुत्र नही हैं * भारत और बागला देश के राष्ट्रगीत एक ही महाववि वी लेखनी से नि सृत हुए जिसने अपनी 'गीताजलि' मे और प्रसिद्ध प्राथना में ल्खिा-- हे मार चित्त, पुण्यती्े जागा र धीर एष भारतेर महामानवेर सागर तीरे । केह साहि जने, कार आद्वनि, क्त मानुषेरधारा दुर्वार ख्रोते एछो कोधा हते, समुद्रं होलो हारा । हंधाय आय, हेथाय अनाय, हेथाय द्वाविड चीन शक हुण दल, पाठान, मोगल एक देहे होलां लीन 1 ( रवीद्रनाथ ठाकुर “भारततीथ' ) रला प्रदीप{तीन जी द क




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