ढोलन कुंजकली | Dholan Kunjkali

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Dholan Kunjkali by यादवेन्द्र शर्मा ' चन्द्र ' - Yadvendra Sharma 'Chandra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शव्या चायी ? त मदाच आने, एक मोवा, धान सौर गुड 1 रूपाली ने विंगतवार वताया,'पर तु पर्सानक्या है? र पे सोर कौ भरद लगी दै । घरमे बासी रोटी भौ नहीं है। ही “अभी खिचडा वा देती हू ।” उसने ढोलवी को साल वी खूटी पर टागा! हीरू थायद नियटने चला गया था । रुपाली के मन में खाली खाट को दज़बर बितृप्णा सी जागी । सोद बठी--वितिना निठल्‍्ला और निकम्मा है उमका मरद ? उसकी जीम पर खारापन तर आया । उसने भारना उतार पवा 1 काचली यर लहभे म उमका भामं वदन अब भी जाक्पव लग रहा था । बह कुजड़ी के पास सावी 1 उसके सिर पर स्नहिस हाथ फेर वोली, ' लारी ! जा, भागवर 'गोर' के रास्ते म स कुछ दामे (विना बनाय हए उपल) चुग ला । मैं खिचडा दूट जेती हु । ' बुजडी लाहू का बना पुयना बूटा लेकर भाग गयी ॥ रुपाली खिचडा ब्टूटने लगी! जागन के एक कोने म ही पत्यर का “ऊपर वना हुआ था । उसके पास ही ढाई-तीन फीट का लवंडी का मूमल रखा हुआ था। ममत का निचला हिस्मा पतला था । वह्‌ खिचडा कूटत कूटत साचने लगी-+ उक्र शिवपते के वारेम 1 अपने प्रेमी जैतसिंह वे बारेमे 1 अतन दा एकं टुबडा उसमे सामन पमर गया-- “मरे 1 तू तो सफा गली है।' जैतरसिह न रपाली को समभाते हुए कहां “सलाम (आग) वो तू दोय से सत्त देव । रुपागी ! मैं तुमे सच्ची त्रात करता हू पर मरान्तरा ब्याह नहीं हो सदता । अखिर युभम ठास या रक्त है। मरे पर की मान मरजाद है!” ` रुपानी वो मार्खे भीग गयी थी । ५ तुमः = शं 1 वकर मपनडरम्‌ रम्द सक्ता ह 4 दुम पनी पडदायतण चनास रपाली से नहीं रहा गया । उसन तीसरी वात कह दी थी, आप वहत दोलन कुजदजी | १,




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