संपूर्ण जीवन चक्र हम लोग | Sampurana Jivan Chakra Hum Log
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.89 MB
कुल पष्ठ :
173
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वि
“. मगर किसी की बराई भी ना हो सके है मुझसे...। ” दबे स्व
चोली भागवंती-[वैसे तो उसका स्वरं तब से दवा रहा था जः
इस घर की बहू वन कर आई थी।
हां भागवंती हां-वरा तो तेरा आदमी बसेसर राम ही है
जमाने भर की बराई करता फिरता है
मैंने ऐसे तो नहीं वोला जी...। ” तड़प सी उठी भागवं:
हां भागवंती -तने कछ भी नहीं वोला-मगर तू हमे
खामोश रहकर भी वहत कछ बोलती रही -खैर जाने दे हां न
त साऊथ एक्सटेंशन वाला पेमेंट लाया कि नहीं
रकम तो वसल हो गई वाप-मगर आधे तो देनदारी के
चले गए और आधे दादा जी के कहने पर डाकघर के बचत खा!
जमा करवा नन्हें डरते-डरते वोला।
'अचे गधे हम चलाते हैं या तेरे दादा जी-देनव
वाद में नहीं दी जा सकती थी क्या...?''
माल तो हम ही लाते हैं वापू-देनदारी चुका ं नहीं तो 2
उधार कैसे मिलेगा...?'” ननहें ने हिम्मत करके कह ही दिर
ता ठीक है-ठीक' है मगर चचत खाता कौन सा भागा जा र
था...1'*
कल बड़की की शादी भी करनी है जी-चार पैसे पार
होंगे तो काम ही आएंगे...” कंपित हो उठा भागवंती
स्वर-वड़की यानि गुणवंती की शादी की सोच जो जड़ गई
उसके साथ।
ये दो दो चार रुपये जमा करने से वेटियों की शादी
हुआ करती भागवंती-हां तेरे चड़ौच वालों का पोस्टकार्ड भी
गया था कल
क्यों -क्या लिखा है जी-उन्हें हमारी बड़की पसंद ते
ना भागवंती की निगाहों में आशा की एक किरण
चमकी।
पसंद नापसंद का सवाल ही कहां है भागवंती -उन्हें
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