संपूर्ण जीवन चक्र हम लोग | Sampurana Jivan Chakra Hum Log

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Sampurana Jivan Chakra Hum Log by मनोहर श्याम जोशी - Manohar Shyam Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वि “. मगर किसी की बराई भी ना हो सके है मुझसे...। ” दबे स्व चोली भागवंती-[वैसे तो उसका स्वरं तब से दवा रहा था जः इस घर की बहू वन कर आई थी। हां भागवंती हां-वरा तो तेरा आदमी बसेसर राम ही है जमाने भर की बराई करता फिरता है मैंने ऐसे तो नहीं वोला जी...। ” तड़प सी उठी भागवं: हां भागवंती -तने कछ भी नहीं वोला-मगर तू हमे खामोश रहकर भी वहत कछ बोलती रही -खैर जाने दे हां न त साऊथ एक्सटेंशन वाला पेमेंट लाया कि नहीं रकम तो वसल हो गई वाप-मगर आधे तो देनदारी के चले गए और आधे दादा जी के कहने पर डाकघर के बचत खा! जमा करवा नन्हें डरते-डरते वोला। 'अचे गधे हम चलाते हैं या तेरे दादा जी-देनव वाद में नहीं दी जा सकती थी क्या...?'' माल तो हम ही लाते हैं वापू-देनदारी चुका ं नहीं तो 2 उधार कैसे मिलेगा...?'” ननहें ने हिम्मत करके कह ही दिर ता ठीक है-ठीक' है मगर चचत खाता कौन सा भागा जा र था...1'* कल बड़की की शादी भी करनी है जी-चार पैसे पार होंगे तो काम ही आएंगे...” कंपित हो उठा भागवंती स्वर-वड़की यानि गुणवंती की शादी की सोच जो जड़ गई उसके साथ। ये दो दो चार रुपये जमा करने से वेटियों की शादी हुआ करती भागवंती-हां तेरे चड़ौच वालों का पोस्टकार्ड भी गया था कल क्यों -क्या लिखा है जी-उन्हें हमारी बड़की पसंद ते ना भागवंती की निगाहों में आशा की एक किरण चमकी। पसंद नापसंद का सवाल ही कहां है भागवंती -उन्हें




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