सुकुमाल चरित सार | Sukumal - Charit - Saar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
30
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चरित-सार । १३
1 कार वर
जाछी है। अच्छा, और एक वात यह है कि तेरा पुत्र भी
उ कभी किसी जैनमुनिको देख पायगा तो वह भी उसी
पय सव विपय-भोर्गोको छोड़-छादकर योगी वन जायगा ।
इसके छ महीनों वाद यश्चोभद्रा सेठानीके पुत्र हुआ ।
आश्रीके जीवने, जो स्वगमें महर्द्धिक देव हुआ था,
बनी स्वर्गकी आयु पूरी हुए वाद यशोभद्राके यद्दाँ जन्म
ऽया 1 भाई-वन्धुर्ओने इसके जन्मका बहुत छ उत्सव
नाया । इसका नाम सुङ्कमाङ रक्खा गया । उधर सुरेन्द्र
निके पवित्र दशन कर और उसे अपने सेट-पदका तिरक
7 आप मुनि हो गया ।
« जब सुकुमाक वड़ा छुआ तव उसकी माको यदह चिन्ता
ई कि कहीं यह मी कभी किसी सुनिको देखकर मुनिन दो
एय, इसके छिए यशोभद्राने अच्छे यरानेकी कोई वत्तीस
न्दर कन्या्यकि साथ उसका व्याह कर उन सवके रदने-
गे एक जुदा ही बड़ा भारी महल बनवा दिया और उसमें
व भकारकी विपय-भोर्गोकी एकसे एक उत्तम वस्तु इकट्ठी
रयादी, जिससे कि सुङ्कमारका मन सदा विपयोमि फैसा
दे । इसके सिवा पुत्रके मोहसे उसने इतना ओर किया
ह अपने घरमं जैनञ्ुनिर्योका आना नाना भी न्द करवा
ष्या |
एक दिन किसी वाहरके सौदागरने आकर राजा पद्योत-
को एक वह्ु-मूस्य रत्न-कम्बरु दिखलाया, इस लिए कि
ह उसे खरीदके। पर उसकी कीमत वहुत ही अधिक होने-
| सजाने उसे नहीं छिया । रत्न-कंवककी वात यशो-
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