श्री गुरु चरित | Shri Guru Charit

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Shri Guru Charit by दौलतसिंह लोढ़ा - Daulatsingh Lodha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुरू-चरित साहित्य से जीवन-चारितों का स्थान शरोर उनकी उपयोगिता स +त = सित ! सित से 'सादित्य' घनता है । “सादिस्य' एक कल्याणु- स्वरूप सज्ञा है । 1 € < € ¢ न धमै सुखस्वरूप एव कर्याणस्वरूप मागे है । अत्तः सािव्य घमे का मूत्तरूप ६ । धमै अचार का कोष है ! श्रतः साह्य आचार का स्पष्टीकरण है ! चार ही जगत्‌ में . एकमात्र चरने योग्य द । अवः शाचायें ्राचार १५ ७ ण फो सममन का साधन है. । चार छ व्याख्या श्राचायें का जीवन है। झत्त आचाये का जीवन-चरित ही उस व्याख्या को सममने का माध्यम है । प्रत्येक च्र(चार श्रंतिम सिद्ध शेता है चनौर बह अनेक युगों; परिस्थितियों, विभिन्न प्रदेशों में सिकल कर यह अमर रूप प्राप्त करता है । उसको आाचरने के लिये जो यम, नियम, विधि बनते हैं, वे भी इसी कारण से सिद्धान्त कहलाते हैं । इससे यद्‌ सिद्ध दृश्मा कि प्रत्ये श्माचार चरते योग्य ही टवा है चौर मनुष्य में उसको 'झाचरने की क्षमता होती है 'और तभी ऐसा अंथ जिसमें ाचारों का उल्लेख होता है 'छागम कहलाता है । सिद्धान्त नियत्रण का काम करते हैं रौर चरतः अनाचार का माभ रहण करने वालों के लिये वे शस्त्रस्वरूप हैं । झतः देखा प्र॑य जिसमे चिद्न्त का उल्लेख होता दें शास्त्र कदलाता दै । श्रत शग और शास्त्र ये साहित्य के दो पत्त हुए, जो अन्योन्याधरित है, धघमेश्षकट फे चक्र है । जीवन्‌-चरिव इस शकट का घुवद्ड है । ,... पुराण; कथा; कद्दानी; उपन्यास, नाटक; आदि जीवन-चरित के विविघ- 'झंग-रूप हैं । पुराण--'झनेक जीवन-चरितों का कोप है । कथा--एक जीवन-चरित का लेखा है |




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