जिनके साथ जिया | Jinke Sath Jiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रद्‌ के साथ बिताया कुछ समय २१ आकाश मे तारे छिटक रहै थे । उस्र दिन शायद पुणिमा भी धी 1 हाथ का इशारा कर वह मुभे वतला रहे ये, “जव बाढ श्राती है, पानी मेरे बगले की सतह को छूता है, तब मुझे बहुत श्रच्छा मालूम होता है ।” कौन जानता था, उस दिन, अन्तिम वार ही, “रूपनारायण' के तट पर खड़ा हुआ मैं उस महानु कलाकार के व्यक्तित्व का दर्शन कर रहा था । [१६३१




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