परंपरा रसराज | Parampara Rasraaj

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Parampara Rasraaj by नारायणसिंह भाटी - Narayansingh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ रसराज होते रहते हैं । प्रेमी श्रौर प्रेमिका के रागात्मक सम्वन्ों का सूत्र भी किंतनी ही भाव-लहरियों श्रौर विचारों से भंक्त होता रहता है। उन मंकारों को व्यक्त करने की क्षमता जिस काव्य में जितनी अधिक है उतना ही वह सफल काव्य कहां जा सकता है । इन दोहो मेँ भी स्यान-स्यान पर अत्यंत सूक्ष्म भावों और मानसिक झावेगों को सूवौ के साथ व्यंजित किया गया है । प्रेमियों की उत्सुकता, मिलन- सुख, दुविधा, वियोग, सामाजिक वधन, श्रात्म-समर्पण रौर नारी के लज्जाभरे मान में न जाने कितनी भाव-निधियों का संसार कलस्व करता है । इस काव्य के सामाजिक महत्व के दो पहलू हैं । एक तो तत्कालीन समाज- सम्बन्धी जानकारी के साधन रूप में श्रौर दूसरा झाधुनिक समाज को उनकी श्रपादियता के रुप में । प्रत्येक काव्य में श्रपने समय की वहुत सी वाते परोक्ष अ्परोक्ष रूप में स्थान पाती ही हैं। इस काव्य में भी नारी की सामाजिक स्थिति, जाति-प्रथा, रेतिहासिक परिस्यितियां, धामिक मान्यता श्रौर इनके श्र॑तगेत ग्राने वालि कितने ही छोटे-वड़े कार्य-व्यापारों के संकेत हमें मिलते हैं । पुस्प श्रोर तारी के प्रेम-सम्वेन्ध, उनकी सौन्दये-चेतना श्रौर इनसे सम्बन्धित श्रादर्शो का विस्तृत वर्णेन इनम उपलब्व होता है । नारी के नग्वद्िल-वणेन के साथ साथ उस समय के प्रापण, वस्तौ ्रौर साज-सज्जाका भी सजीवे चित्रण देखने को मिलता है । नायिका के रंगरूप ग्रौर प्रंग~उपागौँ की शोभा बढाने वाले श्रलंकारों का भी सागोपांग वर्णन कही कही तो इस खुवी श्रौर वारीफी से किया गया हूं कि उसका काव्य-चिश्र हमारे कल्पना लोक में श्रपना स्थायी स्थान बना लेता हैं । मन की झाँखें उस चित्र को देय कर मुग्ध हो जाती हैं तो कान उसकी नूपुर ध्वनि को सुने बिना ही सुन सेते हैं । सोरठ रंग में सावढो, सोपारी रे रंग । सींचांगे रो पांव ज्यू, उड उड़ लागे श्रंग ॥ सोरठ गदर सू उतरो, पायल री भणफार । धूजे गढ़ रा कागरा, धूज गढ़ गिरनार॥ सुहुप सीस गुयाय कर, चद दिस मत जोय । कदेक चंदो ढह पढ़ें, रण भ्रंथारी होय ॥ जिग संचे सोरठ घड़ी, घड़ियो राव खेंगार । क॑ तो संचो गठ गयी, के साद बुहा लवार 1 लज्जा जिस तरह नारी का श्रायूपण है उसी तरह मान उसका श्रधिकार है। लउ्जा नारी के रूप श्रौर कार्यकलापों में एक श्रदुभुन सौन्दर्य ले भ्राती है तो मान उसके हृदय-स्यित श्रनुराग में एक विरिष्ट श्राक्पणभरी वक्रता ले




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