मेरी आत्मकहानी | Meri Aatmkahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरी भरालकटानौ ९
जौदरो थी दुकान करके दिन बिताने लगे । टैवयोग से उन्होंने अनजाने
भे चोरी स्त मलि परीद् लिया । इममे वे पेड गण श्रौर दहित
हुए। मेरे पिता ने उनके घर की देस-भाल की श्रीर '्रपने साले के
श्रपने साथ दुकान के काम में लगाया । जव तक मेरे नाना-तानी
जीते रहे, मेरे मामा उन्हीं के साथ रहें । माता-पिता की सत्यु हो
जाने पर वे हमारे पर में 'प्राकर गहने लगे । मु श्रपने नाना-तानी
का पूरा पूग स्मरण हैं । वे प्राय: मुझे श्रपने यहाँ ले जाया करते
श्र चढ़ा लाइश्यार करते थे । खते समय उनके लफवा मार गया
शरीर उसी धमारी से उनम चु हट । मेरे मामा ने चार मे भेर
पिता के व्यापार में पूर्ण सश्याग दिया श्र काम का खूब संमाला ।
विवाह होने पर उनकी खत्री भी हमारे ही यहाँ रहती थी । यह विवाह
मेरे नाना के जीवनन्काल में ही हुआा था। विवाद हो जते श्वर
मातापिता फे मर जने प्र उन्हें श्पनी खी फो गहने देने की धुन
समाई । दुकान से शुपचाप रुपया लेकर उनदोने गहने षनवाए 1
चद् हाल पीछे से खुल गया । इस पर वे श्रलग झोकर अपनी दुकान
चलाने और मेरे पिता के गाहकों का फोड़ने लगे। मेरे पिता का
व्यवसाय दिन दिन घटने लगा और मामा उन्नति करने लगे।
पिता ने चौक की हुकान उठा दी शऔर रानीकुएँ पर दुकान कर
जी। सारांश यह कि उनकी दुकान का काम दिन दिन घटने लगा
और उन्हें श्र्व-संकोच से बढ़ा कष्ट होने लगा। इस प्रकार लीवन
के अंतिम दिनों में लकवें की वीमारी से असित होकर सितंबर सन्
१९०० में उनका देहांत द्वो गया |
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