श्रीज्ञानेश्वर चरित्र और ग्रन्थविवेचन | Shreegyaneshwar Charitra aur Granthavivechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ आीहरिः ॥ भीन्ञानेश्वर-चरिि -- ~ध श्रीज्ञानेश्वरकाटीन महाराष्ट यत्र योगेश्वरः छृष्णो य्न पार्थो धचुर्धरः 1 तज श्रीर्विजयो भूतिश्ुवा नीतिमंति्म॑म॥ -ध्रीमद्धगवष्ीता श्रीज्ञानेश्वर महाराजका चरित्रावटोकन करनेके पूर्वं इस प्रथम अध्यायम हमोग. एक बार ॒तत्काटीन महाराषटकौ परिस्ितिका अवलोकन करं । हमारे इस परमार्थ-प्रबण भारतवर्ष दशमे इतिहासादि विषर्योकी ओर छोर्गोका ध्यान सामान्यतः कम ही रहा है । इस कारण ज्ञानेशरकालीन महाराष्ट्रका कोई सर्वाज्ञपूर्ण इतिहास अथवां उसके साधन बहुंत हो कम उपलब्ध हैं । तथापि गत पचास वर्षके अन्दर जो ऐतिहासिक सामग्री सामने उपस्थित हो गयी है उसका यथामति उपयोग करके हम इस अध्यायमें ज्ञानेरकालीन महाराष्ट्रका चित्र खींचनेका प्रयत्न करेंगे । किसी मी कारका सामान्य खरूप सामने छे आनेके दिये उस कालके राजनीतिक, साहित्यिक तंथा धार्मिक उद्योगोंका इतिहास देखना होता है और इसीछिये हम यहाँ यह देखेंगे कि ज्ञानेशर मद्दाराजके समयमे अर्थात, उनके पूर्व और पश्चात्‌ सौ-पचास वर्षतक राजनीति, विद्या तथा धर्मकी इृष्टिसि महाराष्ट्रकी क्या अवसा थी । महाराष्ट्रके इतिहासमें यह काठ बड़े महरका है । जैन्नपाल,




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