अध्यात्म तरंगिणी | Adhyatam Tarangini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
197
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand): जे:
थीं । श्रापका संस्कृत भाषा पर विशेष अधिकार था । स्याय, व्याकरण,
काव्य, छन्द, धर्म, श्राचार पर राजनीति के प्रकाण्ड पण्डित थे । सहाकवि,
घर्मशास्त्रज श्रौर प्रसिद्ध दाशेनिक थे ।
दानपत्र मे श्राचायं सोमदेव को गौड संघः का विदधान सूचित क्रिया
है।* हो सकता है कि गौडसंघ देवसंघ की ही एक शाखा हो अथवा
वह एक स्वतंत्र संघ के रूप सें श्रपना अस्तित्व रखता हो । झनेक सघ
श्रौर गण-गच्छो का निर्माण लोक में ग्रामादिक के नामों से हुमा है । श्राचार्य
सोमदेव केवल काव्य समंज्ञ हो न थे, किन्तु भारतीय काव्य-ग्रंथों के विशिष्ट
श्रच्येता भी थे । श्रौर थे राजनीति के कुद्दाल भ्राचा्य, यशस्तिलकं चम्पु'
में श्रापकी नसर्गिक एवं निखरी हुई काव्यप्रतिभा का पद-पद पर अनुभव
होता है, वे महाकवि थे भर काव्य-कला पर पूरा श्रधिकार रखते थे ।
यददस्तिलक मे जहां उनकी काव्य-क्ला का निदशंन होता है वहां तीसरे
भ्रघ्याय मे राजनीति का, भ्रौर ग्रन्थ के अन्त में धर्माचार्य एवं दार्शनिक
होने का परिचय मिलता है । नीतिवाक्यामुत तो शुद्ध राजनीति का
ग्रन्थ है ही, यह ग्रन्थ चाणक्य के श्रथेशास्त्र और कामन्दक के नीति
दास्त्र के बाद श्रपनी सानी नहीं रखता । उसकी महत्ता का मुल्याकन
वे ही कर सकते है जो राजनीति के चतुर पण्डित हैं । उन्होने यशस्तिलक
चम्पू की उत्थानिका में स्वयं लिखा है कि--'मेरी बुद्धि रूपी गौ ने
जीवन भर तकं रूपी सूखी घास खाई है, परन्तु उती गौ से सज्जनो के
पुण्य के कारण यह काव्यरूपी दूध उत्पसन हो रहा है ।*
१. श्री गौडसघे मुनि मान्यकी तिर्नाम्ना यदयोदेव इति प्रजज्ञे ।
अभूव यस्योग्र तपः प्रभावात्समागमः शासन देवताभिः । १ै४॥1
परभणी ताम्रपात
२. जन्म कृतदभ्यासाच्छुष्कात्तर्का तृणादिव ममसास्या: ।
मतिसुरभेरवदिदं सूक्ति-पयः सुकृतिनां पुण्यैः 1
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