अध्यात्म तरंगिणी | Adhyatam Tarangini

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Adhyatam Tarangini  by पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: जे: थीं । श्रापका संस्कृत भाषा पर विशेष अधिकार था । स्याय, व्याकरण, काव्य, छन्द, धर्म, श्राचार पर राजनीति के प्रकाण्ड पण्डित थे । सहाकवि, घर्मशास्त्रज श्रौर प्रसिद्ध दाशेनिक थे । दानपत्र मे श्राचायं सोमदेव को गौड संघः का विदधान सूचित क्रिया है।* हो सकता है कि गौडसंघ देवसंघ की ही एक शाखा हो अथवा वह एक स्वतंत्र संघ के रूप सें श्रपना अस्तित्व रखता हो । झनेक सघ श्रौर गण-गच्छो का निर्माण लोक में ग्रामादिक के नामों से हुमा है । श्राचार्य सोमदेव केवल काव्य समंज्ञ हो न थे, किन्तु भारतीय काव्य-ग्रंथों के विशिष्ट श्रच्येता भी थे । श्रौर थे राजनीति के कुद्दाल भ्राचा्य, यशस्तिलकं चम्पु' में श्रापकी नसर्गिक एवं निखरी हुई काव्यप्रतिभा का पद-पद पर अनुभव होता है, वे महाकवि थे भर काव्य-कला पर पूरा श्रधिकार रखते थे । यददस्तिलक मे जहां उनकी काव्य-क्ला का निदशंन होता है वहां तीसरे भ्रघ्याय मे राजनीति का, भ्रौर ग्रन्थ के अन्त में धर्माचार्य एवं दार्शनिक होने का परिचय मिलता है । नीतिवाक्यामुत तो शुद्ध राजनीति का ग्रन्थ है ही, यह ग्रन्थ चाणक्य के श्रथेशास्त्र और कामन्दक के नीति दास्त्र के बाद श्रपनी सानी नहीं रखता । उसकी महत्ता का मुल्याकन वे ही कर सकते है जो राजनीति के चतुर पण्डित हैं । उन्होने यशस्तिलक चम्पू की उत्थानिका में स्वयं लिखा है कि--'मेरी बुद्धि रूपी गौ ने जीवन भर तकं रूपी सूखी घास खाई है, परन्तु उती गौ से सज्जनो के पुण्य के कारण यह काव्यरूपी दूध उत्पसन हो रहा है ।* १. श्री गौडसघे मुनि मान्यकी तिर्नाम्ना यदयोदेव इति प्रजज्ञे । अभूव यस्योग्र तपः प्रभावात्समागमः शासन देवताभिः । १ै४॥1 परभणी ताम्रपात २. जन्म कृतदभ्यासाच्छुष्कात्तर्का तृणादिव ममसास्या: । मतिसुरभेरवदिदं सूक्ति-पयः सुकृतिनां पुण्यैः 1




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