कोविद - कीर्तन | Kovid - Kirtan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वामन शिवराम झ्ापटे, एम० ए० १ दिखलाई शरैर इतने सम्मान-सहित वे उत्तीसी हुए कि उनको उस उपलब्त में ४०० सपये का पारितापिक सिला | वासनराव का विवाद, पूना-निवासी गणेश वासुदेव जाशी को कन्या से, १८७० ईंसवी में हुआ । गणेश वाधुदेव एक संप्रिय, सयैमान्य शरैर धनी पुरुप थे । उन्होंने वामन- राव की श्रकिच्वनताका किच्विन्‌-मात्र थी विचार त करदे रेल उनको विद्वत्ता, बुद्धिमत्ता श्रौर सदाचर्ण पर न्ध हि- कर अपनी कन्या उनको समर्पित की । इससे व्यक्त होता है कि गणेश वासुदेव मे विचा कै सम्मुख श्रार बातों को तुच्छं समन्ा। बासनराव को पत्नी यद्यपि एक धनी के घर की थी तथापि ऐसा सदूशुणी पति पाकर उसको वामचराव दी निधनता, स्र में मो, दुःखदायिनी न हु; उल्टा उसमे, इस संयाग से अपने को परम साग्यशालिनी साना। सुनते दे वहं रूपवती न थो; तथापि पति शरैर पत्नी देनेंतेश्नपने-्रपने सद्गुणो से एक दूसरे को ऐसा सेदहित कर लिया था कि परस्पर कभी कलह, मतट्ध थ अथवा किसी प्रकार का श्रप्निय व्यवहार नहीं हुआ । वामनराव को इस पल्लो से दे कन्याये हुई श्रौर एक पुत्र भी हुश्रा। परन्तु, खेदं है, पुत्र नहीं रद्दा । कन्या भो, शायद, एक ही इस समय जीवित है । दक्तिण मं विष्णु कृष्ण शास्त्री चिपललूनकर बड़े विद्वान हा गये हैं । उनके कई मराठी-निनन्धों का हिन्दो-अनुवाद 'सागपुर-निवासी पण्डित गज्ञाधसाद अरम्रिहोत्री ने किया




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