नियोजन : देश और विदेश में | Niyojan Desh Aur Videsh Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय प्रवेश | [३ दर एच० लेवी (छ. 1४४) की पहुँच महत्वपूर्ण है । नियोजन, जैसा कि हम जानते हैं, मुख्यतत. तीन उद्देश्यों को लेकर चलता है--देश के, आधिक' जीवन मे स्थापित्व, उत्पादन तथा वितरण पर कुशलतापूर्वक नियस्त्ररा तथा. जनसमुह का उत्थान । एच० लेवी के मतानुसार योजना को सफलता के. लिये उत्पादन तथा वितरण पर नियन्त्रण रखना झावश्यक है, किन्तु उसको रूपरेखा क्या होनी चाहिए; इसको स्पष्ट करने में वह भ्रमफल रहें हैँ । केवल “स्वेन्दापूवक काय, अदृश्य तथा अनियस्त्रित” बह देना हो पर्याप्त नहीं है । आ्राथिक नियोजन को एव दूसरी परिभाषा डा० डाल्टन (05. एल ने इस तरह दी हे--प्राधिक नियोजन का एक व्यापक शरथ है, इसके सझधिकारियों का अपन चुने हुए उददश्यो को अपने विस्तृत साधनों द्वारा वायान्वित करना ।' जैमाकि परिभाषा से प्रतोत होता है, डाल्टन श्पनो परिभाषा को बहुत स्पट्ट नहीं कर पाये है। झ्धिक साधन सम्पन्न कोई भी समुदाय, राज्य एवं वर्ग हो सकता है , लेकिन उनमे से योजना किसे बनानी है ? काय तथा लक्ष्य इनके विभित हैं , लेकिन यहू के जाना जाय कि कौनसा कार्य विशेष कार्य मे लाना है तथा उसके क्या परिणाम है? क्या योजना कोई निश्चित लाभ प्राप्त करने के ध्येय से बनाई जाती है ? ये कुछ प्रमुख प्रश्न हैं जिनका उत्तर देने में ढाल्टन का परिभाषा श्रसमधें है। इसलिये यह परिभाषा झपूर्ण है । प्रो० रौबिन्स (छाए. ह०्ेजए8) ने नियोजन की दो तरह से व्याख्या की है-- १--“वास्तव मे देखा जाय तो सम्द्रण श्राधिक जोवन हो योजना से भरा रहता है, योजना बनाने का अर्थ वायदे श्रौर उदय से काय करना तथा पहुंच करना है ! भ्राथिक प्रकरण में चुनाव का अ्रत्यघिक महत्त्व है।”” २-- ्राथिक नियोजन इष युग की झचूक श्रौपघ है । जन हितकारी राज्य के झ्रादर्श को जानने का श्राधिक नियोजन ही एकमसातन साधन है 1 * रौबिन्स की झाधिक नियोजन की परिभाषा व्यावहारिक, पर्याप्त एव पूर्ण है । श्राथिक नियोजन के उददझ्य के विपय मे तो दो राय नहीं हो सकती । इसका तो एक 1. िट्ण्चछव्याए एबिएद1लडट, घा. उघ5. एंड इटघडड, 5. पेन पफिटावधड प्टटाण्ण, 99 0ड5णाई छा. टिआइद ०12 1ट८500705. 0. ९८०9० 1८ 2८ (0र2रतेड टठडथ्धा ्यठेड [पे 021000- शिववधिटया! हैए०15 शा, छिएतआाण, (1935) छू 243 ) 2. (ही डाचटधफ इ9़थ्वपाए्ट्र . 211. ध्ट०फ्णााट . 11 1ण्0प्टड छ1क्य 0 एक ह5 (0 कद६ पाए द. एए०घसइ2, 2. छएदएए56 (0. लए द, 2प0 ट्णाए्ड 15 (छिन 5590६ 04 दट०घ0ा10 2८01ए11] (पो *ट०एण्णाद एडिएएएड 15 डुच्उएत 0202 0 07 घट कट०0०चशाइ्ट ए2पघापट्ट उड 0पॉफ 2 ाटशड 0 कटा डापट्ट (तट पट! 02 दादा डाउाट *. ह. ए००0ड-र्टिटाएशाट िदाएपाइ दा दीप डिगाठिएात एबंग, (1938), उप




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