प्रश्नोत्तररत्नचिन्तामणी और अठारह दूषणनिवारक | Prashnottararatnachintamani Aur Atharah Dushananiwarak
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
483
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१३६ नातरे-गांधवावियाह करनेका रिवाज हिंदुओमे न होनेसे ख्रीएं वाउहत्या
करती है तो वेधव्य हुवे पीछे दूसरा पति करनेका रिवाज हो तो अच्छा
कि नहीं ? जिस ... ५4 १८७
१३७ आत्मा निर्षिकल्प हैं कि संविकल्प है ? ए १८९
१३८ दारह भावना आर चार भावनाका चितवन उपयोगे लेना उससंभी
विकटप करनेम आता हू ! वा प 5 १८९
१३९. केवलज्ञान तो निचिकरप दज्ञासेदी भकटता है, दव विकल्परूप भावना
आर पूजा प्रतिऋषपण करना दो तो विशेष विकट सदिति रहा, वो क
दरनस क्या लाभ हे ! 1 १९०
१४० आत्मा परभावका अकत्त कदा है ओर ये परहत्ति तो कच्तापनेसें होती
व केसा! ५ १९१
१४१ आत्मा निविकख ओर् अक्तौ होनपरभी कत्तापनेखे वरत पचचख्खान,
मतिक्रमण कर, शास्र वाचे ओर् उससे अक्तौ निर्विकटपता हवै वो
च्या घटना हो सङ् ९९३.
१४२ ज्ञानीजीने तो पुण्य पाप दोचु त्याग करने योग्य वतलाये दहै, ओर ठम तो
एककों छोडकर एकर्कों आदरनेका वतलाते हो वो किसतरह समझना ? ९९४
१४९ तुम जो जो भावना करनेकी कहते हो वो आत्मघरकी है कि परघरकी ? १९५
१४४ आत्पाकी शुद्ध प्रहत्ति किसतरह हो सकत
मन ९९८
१४५ निजरातस्वके भेद अरूपी गिने हैं, और कर्म हे वो तो रूपी हैं, उसकी
निजरा दोवे वो अरूपी क्यों होते ! र त २२०
१८६ जीव अरूपी है और नौ तत्त्व जीवके भेद रूपीमें गिने है उसका हेतु
क्या हूं. ! | ५ २२०
१४७ सवर सत्तावन भेद् अरूपी कदे द ओर संघरकी पत्ति वहारे माद्य
टोती हे तो दारीरसें दे तो अरूपी कैसे क २२०
१४८ सवरनिजरा पमिथ्यात्वि करे या नहीं ? २२९१
१६८९ ननमादुरन मशुजीक अंगने भेके वा फटेकेका उपयोग किया जाय
तौ उसका दोप कायभारीकों लगे या सच श्रावकाका लगे २२१
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