भारत में दुर्भिक्ष | Bharat Mein Durbhiksh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
8 3 सन् | देश्मे भव्ररी मो | विदेशोंको भेजा गया
पड के | है; | ६ ६४८ २३८
१९१६१५७ ४९५. २९०
१९१७.-१८ ७७०८ ४५९०१
सर्यात् यहेँकी कमीका कुछ भौ व्यान न रल कट यौरोकि पेट भरनेश्ठः
नै] वना दोने ध्र भी चार ३१ माधे सन् १९२१ ६० तचार
ख टन गेहं मारते बिदेशक्तो भेजनेरी आहा सरकारने निकाली है है
ततने दुःखकी बात दे कि सरकारको, भारतवपैको रक्षाकी कोई आवश्यकता
दीं शात दोती 1! इस वर्ष वर्षा न दोनेसे देशमें अनकी बढ़ी भारी मीरा है;
मानक दुर्मिशके चिन्द इषि सा रदे दें । इतने पर भी भूखे भारतरे मुखा `
सि छीन कर अपने सगे भाई-पन्पुओको दमारी मा-पाप सरकार ( | )
ना दृ दर कट चिठाना चादती हे कि उन्दें बददज्मी मिटानेके छिये
[चङ्क गोली खाने तकको भी जगद न रद जावे | इस प्रकारकी सरकारकी
परमयुद्धिको देख कर कब तक देय रखा जा सकता दै {
^ भूखे मजन न दोव गोपाठा ”
बाली कहावत भज चरितार्थ दो रदी दै । भृशो रद कर किसी भर्नरकौ
ही मक्ति नहीं दो सकती । थादे बद ईश्वभक्ति हो, राज्यमक्ति हो या
शभक्ति । बतमान स्रराउय आान्दोलनके अपराधी इस भारतवासी नहीं है।
में आागइयरताने ऐसा करनेके लिये विवश किया है । स्वतंत्रता मनुष्यका
एमसि सपिकार दें । फोई मनुष्य भे दो कुछ समय लिये किसीका गुलाम *
!नां रे; परंतु यदद दिठकुठ संभव नहीं कि बद सदा-सर्वदा उसकी गुलामी हो
वा रहे । सौर उसके अन्यायों तथा अत्याचारोंको इं्वरन्काये समझ कर सदता
६ भोर पूवर भी नहीं करे ! भारतमें, दुर्मिशके कारण हुई इन सपोगति-
पे समूल नष्ट करनेझे स्थि एक मात्र उपाय स्वाधीनता है, और उसझे
तिका मारे बतेमान, राजनीतिक स्टसस्य शयम्दाउन हूं 1... ' , _
1. यशा ए वेदमय माद मावा दै,रषमे प्राश दररदे राजा ढी प्रन है;-- _
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