भारत की साम्पत्तिक अवस्था | Bharat Ki Sampatik Avastha

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Bharat Ki Sampatik Avastha by प्रो. राधाकृष्ण झा - Prof. Radhakrishna Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जमीन-कषिकाय ओर देशोंकी तरह उन्हें कलकारखानोमे ले जाकर व्यवहा- रोपयोगी बनानेकी व्यवस्था यहा नहीं है। बाहर जानेवाले मालका कुछ अंश तो जूट, कपास जैसे अखाद्य दव्योका है और कुछ अ'श चावल, गेह, तेलहन इत्यादिका है। हमलोग देख ही चुके है कि जमीनकी क्या अवस्था है । जितनी जमीन कामे खायी जा सकती है उतनी तो प्रायः आ चुकी है। कुछ और थोड़ीसी जमीन है. जो परिश्रम करनेसे व्यवहारोपयोगी बनायी जा सकती है) यह सबकी सब अच्छी ही जमीन नही निकलेगी । इसमेसे बहुतसी खराब जमीन भी निकल अविगी । लोग पहले अच्छी चीजें ही इस्ते माल करते हैं। लेकिन अकाल या बुरे दिन आने पर बुरी चीज़ोंको भी व्यवहार करना पड़ जाता है। आजकाल जब कपड़े महंगे हो गये हैं तब बड़े बड पौशनेविर भरेमानस भी फटे पुराने कपड़े पहनकर काम चला रहे हैं। उसी तरह जमीनकी भी हालत है | अच्छी उपज्ञाऊ जमीन जहां तक आबाद हो सकती थी, हो चुकी है। जहां जमीन अच्छी है, पर खेती करणे अधिक खं पडता है, या आबहवा खराब है, या जंगल है, वहीकी अच्छी जमीन छूट ययी है, नहीं तो, भरसक, अच्छी जमीनपर खेती करनेसे लोभ बाज़ नहीं आये हे। अब अगर मनुष्य-संख्या बढ़ती ही गयी तथा छोग दूसरी ओर न जाकर खेतीपर ही भरोसा करते रहे तो पेट-पूजाके लिये छाचारी दोमे से एक, या दोनों काम अवश्य करने होंगे। या तो जिस ज़म्तीनपर खेती हो रही है १२




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