कांटों और फूलों के देवता | Kanto Aur Phulon Ke Devta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
ओर से इंट-पत्थर वरसने लगे | “बापू” के मित्र महोदय ने
उनसे कहा--“चलिए रिक्शा पर बैठकर भाग चलें ।” पर
वापु” भागकर प्राण बचाने के लिए तँयार न हुए ।
बोले--“नहीं, में मृत्यु से डर कर कभी नहीं भागूंगा, और
फिर उस सवारी पर, जिसे श्रादमी खींचता है।”
ग्वापू” के मित्र महोदय घबड़ा उठें। क्योंकि चारों ओर से
गोरे, दौड़-दौड़ कर इकट्ठें होते जा रहे थे, 'मारो-मारो' की
आवाज़ से धरती आकाश एक करते जा रहें थे । मित्र महोदय
व्याकुल होकर बोल उटे- “मे जापको एक न सुनूंगा । आपकौ
रिक्शा पर वैठकर मेरे साथ चलना ही होगा ।”
और उन्होंने शीघ्र ही एक रिक्शेवाले को बुलाया । वे
ाएू' का हाथ पकड़कर रिक्शे की ओर बढ़े । पर अभी वे
रिक्शे पर वैठ ही नहीं पाये थे कि गोरों ने पहुंचकर उन्हें चारों
ओर से घेर लिया । गोरों ने रिवयेवाले को तो भगा दिया,
और “बापू” के मित्र महोदय को घेर कर वगल में कर लिया 1
अव बच गये 'वापू' । “वापू' पर पत्थरों, कंकड़ों और ईंटों की
वर्षा होने लमौ 1 किसी ने “बापू की पगड़ी उतार ली, किसी
ने कुर्ते को नोचकर फाड़ डाला । किसी ने तमाचा लगाया, तो
किसी ने लात 1 'बापू' चक्कर खाकर गिरने वाले ही थे कि
एक मकान की जाली उनके हाथ में आ गई । वे उसी को पकड़
कर खड़े हो गये । गोरे अब भी क्रोध में बापू प्र इटो ओर
पत्थरों की वर्पा कर रहें थे।
संयोग की वात, एक अंग्रेज महिला उस ओर से निकली ।
उसको 'वाएू' पर दृष्टि पड़ी । वह डरवन के एक पुलिस अफसर
को स्त्रो थी और 'वाएू' से परिचित थी । वह दौड़कर 'बापू' के
पास जा पहुँची 1 उसने 'वापू' को अपने संरक्षण में ले लिया । इसी
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