कांटों और फूलों के देवता | Kanto Aur Phulon Ke Devta

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Kanto Aur Phulon Ke Devta by श्री व्यथित हृदय - Shri Vyathit Hridy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ ओर से इंट-पत्थर वरसने लगे | “बापू” के मित्र महोदय ने उनसे कहा--“चलिए रिक्शा पर बैठकर भाग चलें ।” पर वापु” भागकर प्राण बचाने के लिए तँयार न हुए । बोले--“नहीं, में मृत्यु से डर कर कभी नहीं भागूंगा, और फिर उस सवारी पर, जिसे श्रादमी खींचता है।” ग्वापू” के मित्र महोदय घबड़ा उठें। क्योंकि चारों ओर से गोरे, दौड़-दौड़ कर इकट्ठें होते जा रहे थे, 'मारो-मारो' की आवाज़ से धरती आकाश एक करते जा रहें थे । मित्र महोदय व्याकुल होकर बोल उटे- “मे जापको एक न सुनूंगा । आपकौ रिक्शा पर वैठकर मेरे साथ चलना ही होगा ।” और उन्होंने शीघ्र ही एक रिक्शेवाले को बुलाया । वे ाएू' का हाथ पकड़कर रिक्शे की ओर बढ़े । पर अभी वे रिक्शे पर वैठ ही नहीं पाये थे कि गोरों ने पहुंचकर उन्हें चारों ओर से घेर लिया । गोरों ने रिवयेवाले को तो भगा दिया, और “बापू” के मित्र महोदय को घेर कर वगल में कर लिया 1 अव बच गये 'वापू' । “वापू' पर पत्थरों, कंकड़ों और ईंटों की वर्षा होने लमौ 1 किसी ने “बापू की पगड़ी उतार ली, किसी ने कुर्ते को नोचकर फाड़ डाला । किसी ने तमाचा लगाया, तो किसी ने लात 1 'बापू' चक्कर खाकर गिरने वाले ही थे कि एक मकान की जाली उनके हाथ में आ गई । वे उसी को पकड़ कर खड़े हो गये । गोरे अब भी क्रोध में बापू प्र इटो ओर पत्थरों की वर्पा कर रहें थे। संयोग की वात, एक अंग्रेज महिला उस ओर से निकली । उसको 'वाएू' पर दृष्टि पड़ी । वह डरवन के एक पुलिस अफसर को स्त्रो थी और 'वाएू' से परिचित थी । वह दौड़कर 'बापू' के पास जा पहुँची 1 उसने 'वापू' को अपने संरक्षण में ले लिया । इसी




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