उर्दू का रहस्य | Urdu Ka Rahasya

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Urdu Ka Rahasya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ षुं का उद्गम संबंध जातिगत न होकर केवल व्यक्तिगत ही है। अर्थात्‌ उसका उद्गम स्थान या अङ्ा उदू मात्र नहीं बल्कि शादजदाना- ` वाद्‌ का उदूःएमु्मल्ला दी दै । उदृएमुखल्ला की जव्रान उदू के नाम से ख्यात हुई तो सदी कितु उसे टकसानी होने की सनद्‌ तथ मिली जव उसे फारसी की जगह शादी जवान होने का फ हासिल हा । हम पहले ही देख चुके हैं कि खान छारजू ने जिस लोक-मापा के श्र उष्टराया है बह ग्वालियारी या व्रजमापा है, कुछ देदलवी या उदू नदीं। उदू यानी शाही लोगों की हिंदी जवान के सनदी चनाने का सारा श्रेय जनाब उस्ताद 'हातिम” के। हैं जिन्ददेनि श्रपने दीवानजादे की भूमिका में स्पष्ट कर दिया हैं कि उनके दीवान की भाषा शाही लोगों की भाषा है। उन्होंने उदू का स्पष्ट उल्लेख न कर उसकी व्याख्या भर कर दी है | उनका साफ साफ कददना हैं :-- “चराज्षमरं: देदली की मिरज़ायाने ,हिंद व. फसीहाने रिंद दर मुद्दावरः दारद मंजूर दाश्त: सिबाय श्रा जवान हर दृयार ता ब हिदवी कि 'ाँ रा भाका. गोयंद मैक करदः ॥ खान 'झारजू के मरते ही समय न पलटा खाया। उसी फा यह्‌ क्रूर परिणाम ह कि, उनकी सनदी भाषा का बहिष्कार हुष्पा 'ौर तैमूरी शाइजादों 'और फक्कड फारसीपरस्तो की सवान की टकसाल कायम हुई जा कटचृट कर सचमुच उदू




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