व्याख्यान दिवाकर | Vyakhyan Diwakar

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Vyakhyan Diwakar by कालूराम शास्त्री - Kaluram Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ अवतारवादू क [ २२३७ ] रही वात यइ कि निराकार पदार्थं साकार नौं टोता, पेखा (कहना बेसमझ छोगों की चात है । जीवोनिराकारशरीरधारी 1 तथेव व्योमा्िशरीरवन्तौ । सवैस्वरूपस्य कथं न विष्णो- , देहोरि सुधाच्छूतिभिः प्रदिष्टः ॥ जीव जो है बह निराकार है किन्सु निराकार जीव अनेक शरीर धारण करके साकार बन जाता है, ली प्रकार निराकार आकाश और निराकार अग्ति ये दोनों दारीरी बन जाते हैं । इसको ऐसे समझिये कि अग्नि सच जगह व्यापक है। संसार मै कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है कि जिसमें अग्नि न हो, लोहे की कील लेकर पत्थर पर मार द, रोहे ओर पत्थर मं व्यापक निरा- कार अग्नि साकार होकर सै म बैठ जाता है। यक मे उत्तरारणि और अधरारणि दो लकड़ियो का सन्धन होता है । इन दो ढक- दियो मै व्याप्त निराकार अग्नि साकार बनता है उसी से यह होता है, दियासला की सींक मेँ व्यापक निराकार अग्नि धित देने से साकार वन जाता है । कौन कहता है कि निराकार पदार्थ साकार नहीं हो सकता ? अजन्मा का जन्म 1. किसी किसी मनुष्य का यह प्रश्न है कि ईश्वर तो अजन्मा है फिर घदद अजन्मा ईश्वर जन्म कैसे ठे लेगा । यदि जन्म लेता




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