व्याख्यान दिवाकर | Vyakhyan Diwakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ अवतारवादू क [ २२३७ ]
रही वात यइ कि निराकार पदार्थं साकार नौं टोता, पेखा
(कहना बेसमझ छोगों की चात है ।
जीवोनिराकारशरीरधारी 1
तथेव व्योमा्िशरीरवन्तौ ।
सवैस्वरूपस्य कथं न विष्णो-
, देहोरि सुधाच्छूतिभिः प्रदिष्टः ॥
जीव जो है बह निराकार है किन्सु निराकार जीव अनेक
शरीर धारण करके साकार बन जाता है, ली प्रकार निराकार
आकाश और निराकार अग्ति ये दोनों दारीरी बन जाते हैं ।
इसको ऐसे समझिये कि अग्नि सच जगह व्यापक है। संसार
मै कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है कि जिसमें अग्नि न हो, लोहे की
कील लेकर पत्थर पर मार द, रोहे ओर पत्थर मं व्यापक निरा-
कार अग्नि साकार होकर सै म बैठ जाता है। यक मे उत्तरारणि
और अधरारणि दो लकड़ियो का सन्धन होता है । इन दो ढक-
दियो मै व्याप्त निराकार अग्नि साकार बनता है उसी से यह
होता है, दियासला की सींक मेँ व्यापक निराकार अग्नि धित
देने से साकार वन जाता है । कौन कहता है कि निराकार
पदार्थ साकार नहीं हो सकता ?
अजन्मा का जन्म 1.
किसी किसी मनुष्य का यह प्रश्न है कि ईश्वर तो अजन्मा
है फिर घदद अजन्मा ईश्वर जन्म कैसे ठे लेगा । यदि जन्म लेता
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