महाभारत भाषा द्रोणपर्व | Mahabharat Bhasha Dronaparv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
612
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand), ब्रोणपवै | ७
चाहता हूं और. प्राणों को छोड़कर भीष्मजी केही साथ जाऊँगा मैं युद्ध में
शाच्र्मो के सब समहं को मारूगा यथवा उनके हाथसे मरक! बीते के लो्कोको
पाऊंगा २० दुर्योधन का पराक्रम न्यून और हृतहोने वा अतिशय प्रत्युत्तर में और
सीसमेत मरो के रोदन कलेपर सको युद्धकमे करना योम्यतापृव्वेक उचित `
हे हे सूत ! में यह जानता हूं इसी हेतु से अव मेँ राना दुर्योधन के शुभे को .
विजय करगा २१ मे इस महामयकारी युद्ध में कौरवों की रक्षा करता और पा-
णुड्वों को मारता अपने प्राणं की आशा छोड़ लड़ाई में श्नुओं के सब समूहों
को मारकर दुर्योधन के अरे राज्य को दूंगा २२ मेरे उस कवच को बांधी जोकि
उज्ज्वल सुवंणमय: महाभ्पूथ्वे होकर मणि रलादिकों से प्रकाशमान है और
सृय्य के समान प्रकाशित शिरख्राण को और अग्नि वा विष के समान धनुष
बाणों को २३ सोलह उपासंगों समेत स्थपर शगाओ और इसी प्रकार मेरे दिव्य
घनुषों को -लाओओ इसके विशेष सद शक्ति वा भारी ९ गदा और सुव्ण जटित
प्रकाशमान शङ्खो को लाभो २४ इस स्वणुमयी अपूच्वे नागकश्षा को घर कमल
के पमान शोभायमान जा को और अच्छी बैंधीहुइई अद्भुत माला को शुद्ध
वखरों से स्वच्छ करके जाल समेत लाओ २४ हे सृतपुत्र ! श्वेत बादल के स-
मान प्रकाशमान हृष्ट पुष्ट शरीरवाले मन्त्रों से पवित्र कियेहुए जलों से स्नान
कराये व सन्तप् कियेहुए सुवणुपात्रों से युक्क शीघ्रगामी घोड़ों को तुरः
लाझो २६ स्वणंमथी मालाओं से अलंकृत सृथ्यं चन्द्रमा के समान प्रकाशमान
रत्रों से जटित युद्ध के योग्य घोड़ा से युक्त आलस्य को दूर करनेवाले द्रव्यो
सहित उत्तम रथ को शीघ्र वतमान कथे २७ वेगवान् विचित्र धनुष व अच्छे
प्रकार बांधने के योग्य प्रत्यरात्रो को शरोर २ बणों ते महए षड २ तृणी को _
व कवचों को पाकर लाओ २८ यात्रा का सब सामान शीघ्र लात और हैं
वीर ! ददी से भरेहुए् सवणे ओरं कास्ययात्र लामो माला को लाकर अङ्ग में
बोधकर शीघ्रता से विजय के निमित्तभेरीको बनाओ २६ हे सृत ! तू वहांपर बड़ी
शीघ्रता से चल जहांपर अर्जुन, भीमसेन, युधिष्ठि और नकुल; सहदेव हैं में
युद्ध मं सेम्मुल .होकेर् उनको मारूगा अथवा शचु्थो के हाथ से मरकर भीष्म
जी कै साथ जाङ्गा ३० जिस सेना में सत्य ै्यवाला राजा युषिष्टि नियत है
ओर भीमसेन; अरुनः सात्यकी, सब सृञ्जय अमर वासुदेवजी नियतं ह वह सेना
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