वाक्य वृत्ति | Vakya Vratti

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Vakya Vratti by ब्रह्मचारी विष्णु - brahmchari vishnu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( -१३ ) सुप्य दूसरे फे सहारे मागे ` चलता दै इसी-भकार सु अभिः कारी सदूरर श्नौर सत्‌ शाश्च के संदारे चलता है। प्रत्यन्त चंचल मन वाला पुरुप श्न्नान निवृत्ति के मागं मे आगे चल नहीं सकता, जब तक सन..को 'श्रथिक चंचल करने यले विके दोष का नाश न हो तय -तक उपर कहे हुए 'शम दस सौर धंद्धा भी नहीं होते इसीसे मन के विक्तेप का नाश करना चाहिन्रे ।।लीवकों विक्षेप दी सम भाव सें ाने-नहीं देता । वित्ते मन से हुआ- करता हैं इससे विक्लेप “को छोड़ने वाला मन .समा- धान मन कहा जाता है; यदद 'ारम्भ की समता ही द्धि को 'घाप्त . होकर रह्म सान्तात्कतार सदित निर्विकल्पता को प्राप्त होती हैं । मोह माग के अधिकारी बनने वाले को शास्त्रोक्त कर्म 'और उपासना की धिक श्रासक्ति -दोडनी वाद्ये । जव तक उनमें प्मासक्त दै तव तक ्रधिकारी दोकर ज्ञान मागं में प्रवृत्त .नदीं दो सकता । ज्ञान मार्ग कम श्रौर उपासना करके शुद्ध किये हए प्रन्तःकरण.वाले का है यदि कर्मादिक करने की श्रासक्ति रूप श्रहूमाव रहे तो श्रदभाव. जिसमे दोना है पेसा ज्ञान . कैसे होगा क्म श्रौर उपासना जगत्‌ मेँ एल देने बले दै श्रौर ज्ञान पन्ना स्वरूप जगत्‌ को.दटाने बाला है इसी कारण कमं नौर उपासना से भी शान्त द्ोना उपराम हैं। जेसें कोई कार्य करते : करते कार्य करने को छोड़ देता दै तब उसे उपराम हुआ ऐसे कहते हैं इसी: प्रकार कर्म उपासना से. नियत्त होना हीःउपराम है। शरीर रते हुए संपृणैःक्रिया - चुट नदी सकती. इससे सामान्य




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