मणिरत्नमाला प्रश्रोत्तरी | Mani Ratna Mala prasnorari

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Mani Ratna Mala prasnorari by ब्रह्मचारी विष्णु - brahmchari vishnu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९ ) में बैठना ज्ञान है, उसमें बैठ कर फिर चलना नहीं होता इसी प्रकार पर्‌ध्रह्म के पाद रूप ज्दाज़ में बैठने के पश्चात्‌ हमको स्वयं कु कतंव्य नहीं रहता । जो कुल कर्तव्य है बदद जहाज का और मल्लादद का दी है। वह कर्तव्य भी अज्ञान की दृष्टि में ही है । न्रह्म रूपी जहाज़ व्यापक होने से परमानन्द स्वरूप है, कर्तव्य शून्य है। उपर दर्शाई हुई सूदमता को सममफना चाहिये कि जैसे जद्दाज़ समुद्र से पार नहीं जाता इसी प्रकार विश्वेश का पाद रूप जहाज़ भी संसार से पार नद्दीं जाता । बिश्वेश का पाद संसारी लश्ष्य में है किन्तु उसमें इतनी विशेषता है[कि उसका संसारी भाव निशत्त दोकर तत्त्व ही रह जाता है वह ही तत्त्व रूप स्थिति चास्तविक पार होना है जो शुरु कृपा से श्राप्त ोता है । मंद अधिकारियों के निमित्त पुराणोक्त उपासना ्ादिक न्तःकरण की शुद्धि का हेतु होता है । जो सकाम किये जांयगे तो शुभ कर्मों का फल भौतिक सुख की प्राप्ति होगी और वे दी कर्म निप्काम करने से अन्तःकरण की शुद्धि होती है। निपिद्ध कम से विहिति सकाम कर्म भी अच्छा है और निष्काम कर्म उससे भी अच्छा है । उपासना का दूसरा नाम भक्ति है। श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेब्न, अर्चेन, चन्दन, दास भाव, सखा भाव और आत्म समपंण ये नवधा भक्ति कही जाती है । यह सगुण की होती है। किसी भी सशुण-साकार ईश्वर में, प्रतिमा में, '्थवा शुरु में उसका उपयोग होता है। वह भी फल




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