परमाथ - पत्रावली तृतीय भाग | Parmaath - Patrawali Tritiya Bhaag
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5 तृतीय भाग
नामका जप करना चाहिये । यदि सगुणवाचकः नाम हो तो
सगुणरूपका ध्यान करते हुए अथवा निमुणवाचक नाम हो
तो सत्-चित्-भानन्ट आदिं विद्योपणोके सहिन निगुण वह्यका
ध्यान करते हुए नाम-जप करना चाहिये ।
( २ ) सर्वव्यापक परमात्माके स्वरूपमे स्थित रहते
इण समष्टि बुद्धि--क्षानचश्वु ओढा संसार, शरीर ओर कर्मक
द्र्ण-साश्री रहना चाहिये । अहङ्कार ओर क्त्वाभिमानका
त्याग कर देना चाहिये । उन्टीसे अन्तःकरणमे राग-द्वेपादि
विकाराका उदय होता दै । ओर जवतकः अन्तःकरणमे इन
विकारोका अनुमान दो तवतकः सवंव्यापी परमात्माके खरूपम
स्थित टोतेमे कमी सखमद्नी चाहिये ।
( £ ) चित्तको सदा प्फ रखना चास्थि । चिना
हुए भी प्रफुछताका अनुभव करना चाहिये 1
चौथी वात प्रथम श्रेणीके अर्थात् नये साधकके लिये
दे । ऊपरकी तीन स्थितियोमे स्थिन ग्टनेसे खनः प्रसन्ना
चनी रटनी है, साथ ही दटयमे निर्मटना, शायीरमे टल्कापन,
ख्य जगतस सत्ताका अभाव, उच्छियामे चेननता, आटस्यका
अभाव (3 ~ ५
अभावः वेयाग्यकी चृद्धि इन्यादि वात भी आप-से-आप था
जाती ह ।
भजन जिनना दो, बरहुमृख्य दोना चाटियि । जो अजन
निष्काममाव नथा शुम्सीनिसे ओर ध्यानक्रे साथ निरन्तर
रोना टै, ची वहुमृल्य भजन टै ! सो निष्काम भाव और
गुप्तरीतिकी दृष्टिसि तो आपलोगोका भजन ठीक ही मातम
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