पुरुषार्थ | Purushartha

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बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ खदा खार्थं शरीर पराथं या झासुरी रीर दैवो सम्पत्ति की -खत्ता चली आती है । व उन शक्तियों या कारणों पर भी दृष्टि डालनी चाहिए जिनसे प्रेरित दोकर कोई धर्म में प्रदत्त दोता है अथवा शास्त्रों के नियमों का पालन करता है । यदद दो प्रकार केह पक झाष्यात्मिक श्र दूसरा परात्मिक जिसे परा झौर अपरा कहते हैं । छाध्यात्मिक कारण या झापरा से हमारा झभिपाय उस प्रेरण से हे जो मजुप्य को उस शक्ति के द्वारा होती है जो स्वयं उसकी झात्मा में विद्यमान है। जैसे, मनुष्य में इस भाव का होना कि जैसे मुझे दुःख दोता है, वैसे दूखरे को भी दुःख पहुँचता है । यह दैवी प्रेरणा है । यदि यह भाव मजुष्य मं सदा जाग्रत रहे तो उससे कोई अधमं हो दी नदी सक्ता । णेस पुरुषरत को धमं में प्रदत्त करने के लिये अन्य शक्ति की आवश्यकता नददीं है। इसका सूल सूत्र “झात्मनः प्रतिकूलानि परोषां न समाचरेद” है पर यह भाव सब में सर्वथा होना असंभव है । झतः उनके लिये परात्मिक या परछृत प्रेरणा की झावश्यकता है । इसे परा भी कहते हैं । झपरा शक्ति का पूरणे आधिभांव न होने ही की दशा में परा को श्रावश्यक्ता पड़ा करती है। ऐसी छवस्था में मचुष्य बाह्य उपाकरणों घारा - विधि झौर निषेध के पालन करने के लिये बाध्य किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह दोता है कि या तो झपराधी झपना 'झाचार सुधारे झथवा पसा झाचरण कर दी न खके । झांच-




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