भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास | Bhartiya Swadhinta Sangram Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्रान्ति के पचात ७
सभी को है। विद्रोह को दबाने में लगे हुए अंग्रेज अफसरों के अपने बयानों और
उस समय के अंग्रेज लेखकों की स्वीकारोक्तियों से उन अत्याचारों की पुष्टि
हो चकी है।
उस समय के अंग्रेज शासकों की मनोवत्ति के कुछ दृष्टान्त निम्नलिखित हैं
पेशावर में १० जून, १८५७ को कुछ हिन्दुस्तानी सिपाहियों को मृत्यु-दण्ड
दिया गया था। जिन पर आरोप लगाया गया, उनकी संख्या १२० थी। पेशावर
के बड़े अफसर एडव्डस ने प्रान्त के मुख्य शासक सर जान लारेन्स से पुछा कि क्या
उन सव्र अभियक्तों को मत्य-दण्ड दे दिया जाय । सर जान के उत्तर का कुछ अंश
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। उसमें कहा गया था;
हमारा उहेद्य उन्हें (भारतवासियों को ) डराकर एक दृष्टान्त कायम
करना है। यह उदेस्य सिद्ध हो जायगा, यदि हम उनमें से एक चौथाई से
लेकर एक तिहाई तक की किसी संख्या को नष्ट कर दें । में चाहूंगा कि
(नष्ट करने के लिए) उन लोगों को चुना जाय, जिनका सामान्य चाल-चलन
खराब है, या जो उपद्रवी, असन्तोष फलाने मे अगुआया २६ ता० से पहले
अफसरों के सामने गस्ताख रह चूके हैँ । यदि इनसे नष्ट किये जानेवालो की
आवश्यकं सख्या पूरी न होती हो, ता सबसे बूढ़े सिपाहियों को भी शामिक्त
कर दिया जाय। . . .” (के--भाग ६)
वसा ही किया गया। स्पष्ट है कि उस समय के अंग्रेज शासकों की दृष्टि में
मृत्यु-दण्ड किसी अपराध के लिए ही नहीं, मारे जानेवालों की संख्या पुरी करने
के लिए भी सवंधा उचित समझा जाता था ।
एक अन्य आज्ञापत्र मे सर जान ने लिखा था--““सबसे अधिक प्रभावशाली
मृत्य -दण्ड यह है कि उसे तोप के मुह् पर रखकर उड़ा दिया जाय । '
विद्रोह के सम्बन्ध मे कंद किये गए भारतवासियों को तोप से उड़ाने का द्य
देखकर उस समय के अंग्रेज भी दहर गए थे। एकं पादरी की विधवा मिसेज कृप-
केण्डने लिखाथा
युद्ध के बाद बहुत-से कंदियों को फांसी का दण्ड दिया गया । परन्तु जब
देखा गया कि वे फांसी की परवाह नहीं करते, तो निश्चय किया गया कि उन्हें
तोप से उड़ाया जाय । . . .एक अफसर का कहना था कि वह दृश्य बहुत
वीभत्स था। . . .एक बेचारे का सिर (तोप से उड़कर) दूर जा पड़ा, जहां
एक देखनेवाले के चोट लग गई।'”'
जो दण्ड विद्रोह के अपराधियों को दिये गए, उनका एक नमना निम्न-
लिखित है
पंजाब में कुछ अंग्रेज और सिख सिपाहियों ने मिलकर एक घायल कंदी को
जीते-जी जला दिया। लेफ्टिनेण्ट मैजंडा को उसे देखने का अवसर मिला। वक
तिलमिलाकर लिखता है
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