मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उनके कारण तृतीय चतुर्थ भाग | Mughal Samrajya Ka Shreya Aur Unke Karan Tratiya Chaturth Bhag

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Book Image : मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उनके कारण तृतीय चतुर्थ भाग  - Mughal Samrajya Ka Shreya Aur Unke Karan Tratiya Chaturth Bhag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४. मुगल सान्नाज्यका क्षय और उसके क।रण ` +~ ~~~ ~~~ ~~~ ~~~ + ~~~ ^~ ~~~ ~ ~^ ~~~ ~~~ २-दो राञ्योक्ा अन्त आन दक्षिणम इस सकस्पसे गया था कि वह पैरमे चुभनेवाले कंटिको एकं ही बार जसे उखाड़ देगा । मराठोकी बढती हुई दराक्तिसे बह क्षल उठा था । दक्षिणमे उस समय तीन बडी शक्तियो थी । मराठा रियासतके अतिरिक्त बीजापुर और गोलकुष्डाकी रियासत भी स्वाधीन थी । कई पीयोसे मुगल बादशाह इन दोनी मुसलमानी रियासतोका अन्त करनेका यत्न कर रहे थे; परन्तु सफलता नद्दी प्राप्त कर सके । मराठा राज्यकी वृद्धि इन रियासतोके सिरपर ही हो रही थी । बीजापुर और गोलकुण्डाको शिवाजीने खूब चूसा और खूब खाया । वह रियासते मराटा-शक्तिकी खुराक थीं । ओरगजेबने मराटा-शक्तिको नष्ट करनेके लिए, पहले उसकी खुराकको नष्ट करना ही आवश्यक समझा । उसने बीजापुर और गोलकुण्डाको हमेदाके लिए, साम्राउयमे मिला लेनिका दृढ़ निश्चय करके पहले बीजापुरपर धावेका हुक्म दे दिया । बीजापुरकी ओरसे इस आफतको टालनेके अनेक यत्न किये गये । मुगल शादजादा आजम्से बीजापुरी राजकुमारी शहरबानकी शादी हद थी । शदस्वानूने अपना सारा असर बीजापुरकी रक्षाके लिए लगानेकां यत्न किया । बीजापुरका एक दूत-मण्डल भी १३ मई १६८२ को बाददाहकी सेवामे उपस्थित हुआ था, परन्तु उसने जो उपहार भेट किये, वह अस्वीकार किये गये । ओरगजेवको विश्वास हो गया याक ब्रीजापुरकी आरसे मराटा-राज्यको मदद दी जाती है । १६८३ के अन्तमे ओरगजेवने ब्रीजापुरके आक्रमणकी बागडार सेनापतियोके हाथसे केकर अपने हाथमे सेभाटी, ओर जोरसे काम श्रू हुआ । लगभग तीन वर्ष तक मुगलोकी सम्पूर्णं शक्तिका सग्राम र्बाजापुरसे जारी रहा । मुगल सेनाओने ब्रीजापुरका घेरा डाल दिया, ओर मो्चै जमाकर सब रास्ते रोक दिये । ब्रीजापुरके डाके बहुत देरतक लड़े, स्तूब बहादुरीसे लडे, परन्तु जब दुदमनकी मददको भृख आगर्ई, तब उन्हे हार माननी पडी । १२ सितम्बर १६८६ के दिन आदिलशाही वराके अन्तिम बादशाहको गदी छोडनी पढ़ी । नगरनिवासी शक्ति-भर ठ्डकर भूखसे पराजित हो चुके थे । सिकन्दर शाह दिनके एक बजे राव दलपत बुन्देलाकी देख-रेखमे औरगजेबके दरबारमें पहुँचाया गया । उस समय मुगल-कैम्पमें खुशीकी शहनाई बजाई ग ओरं




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