कला और आधुनिक प्रवृत्तियां | Kala Aur Adhunik Pravrattiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ कला श्रौर श्राधुनिक प्रवृत्तिर्यां
मेरा ख्याल है, बड़ा मुश्किल है । श्राप स्वयं विचार करें, श्राप में और बालक में क्या
अन्तर है ?
सदिर्यां बीत गयीं, युग बीत गये । मनुष्य का रूप, रंग, चाल-चलन, भ्राचार-विचार
सब कुछ बदल गया । बुद्धि का विपूल विकास हृग्रा । मनुष्य परमाणु शक्ति के बल पर
शीघ्र ही चन्द्रलोक में पहुंचनेवाला है, परन्तु श्राज भी चित्र को वस्तु समझने का भ्रम
बना है । श्रपनी जगह है । यूरोप के विद्व-विख्यात कलाकार सूवेन्स ने ऐसे चित्रों का
निर्माण किया जिनमें शरीर के भ्रंग, जीवित लहू-युक्त मांस-पेदिय-से प्रतीत होते हं रौर
उन्हें छकर देखने की भ्रनायास इच्छा होती है । भारतवषं मे एसी कला तो दृष्टिगोचर
नहीं हो सकी, पर राजा रवि वर्मा ने इस श्रोर प्रयास किया था । भ्रौरभी इस प्रकारके
चित्रकार थे, श्रौर हैं, यद्यपि उतनी सफलता उन्हें प्राप्त नहीं हुई । हमारे समाज में भी
अधिकतर व्यक्ति चित्र का यही शभ्रादर्श राज भी मानते हैं श्रौर कलाकार से ऐसी ही ग्राशा
करते हैं । क्या में कहूँ कि बालक, गौरया ग्रौर मनुष्य की प्रकृति चित्र के प्रति झ्राज भी
एक-सी है ? हम चाहते हैं कि चित्र ऐसा हो जो वस्तु का आम उत्पन्न कर सके । चित्र में
किसी वस्तु का ऐसा चित्रण हो जो हमें भ्रम में डाल दे भर चित्र में बनी वस्तु हम वही
वस्तु समझ सकें ।
ग्राधुनिक कलाने हमारी इस प्रकृति के बिलकुल विपरीत कदम उठाया है-हमारा
अआम ही हमसे छीना जा रहा । कँसे हम श्राधुनिक कला का ्रादर कर सकते है ?
भारतवर्ष में यद्यपि और बातों में मति-भ्रम हुमा है, परन्तु भारतीय प्राचीन चित्रकला
का इतिह्।स प्रमाण है कि इस भ्रम मे पडने का यहां कभी प्रयत्न नहीं हृश्रा ।
प्राज यूरोप तथा ग्न्य पादचात्य देशों में भी झ्राधुनिक कला ने इस भ्रम के विरुद्ध
मोर्चा बना लिया है । चित्रकला स्वाभाविकता से कहीं दूर पहुँच गयी है ।
चित्र चित्र है, वस्तु वस्तु है । दोनों एक नहीं हैं । हाँ, वस्तु का भी चित्रण हो सकता
है, होता श्राया है, हो रहा है भ्रौर भविष्य में भी होगा । श्रब प्रश्न यह है कि कया वस्तु
का ही चित्रण करना कला है ? ऐसा समझा जाता था श्रौर श्राज भी लोग ऐसा ही
समझते हैं । चित्र दाव्द का सम्बोधन करते ही प्रद्न उठता है, किस वस्तु का चित्र ? किसी
जीव, पदार्थ या वस्तु का चित्र ? यह समझना एक परम्परा-सी हो गयी है । यही परि-
भाषा बन गयी है-चित्र किसी वस्तु का होता है श्रर्थात् चित्र रेखा, रंग, रूप के माध्यम से
किसी वस्तु का चित्रण होता है । चित्र वस्तु का चित्रण न होकर श्रौर वया हो सकता है ?
वस्तु-चित्रण ही कला है, ऐसा श्रधिकतर लोगों का ख्याल है ¦
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