ऋग्वेदके बनानेवाले ऋषि | Rigvedke Bananewale Rishi

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Rigvedke Bananewale Rishi by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) किक मन्दसानः सुतं पिव । नाना अधे- हे कुशिक केलइन्द्र आ और आनन्दके साथ दमारे सो- मरसकोपी। जेतऋषिः १ ( ११ ) दयानन्द भाष्यमें इसको सूक्त ११ का ऋषि बणेन करते हवे “ जेता माघुच्छन्दस ” अर्थात्‌ मधुच्छन्दाका बेटा जेता लिखा हैं, सारे ऋग्वेदमें इस ऋषिका एक यह ही सखूक्त है । मेघातिथि ऋषि १ ( १२-२३ ) दयानन्दने मक्त १२ से २३ तकका ऋषि ऋग्वेद भाष्यमें “+काण्रावो मेधातिथिः अयत्‌ कण्वका बेटा मेधातिथि छिखा है, यह ऋषि अपने बनाये सूक्तोंम ऋग्वेदके अन्दर अपने आपको इस भकार प्रगट करता हे । म॑ं१सू १४ ऋ २-आ त्वा काण्वाः 4»... च्ल ५ आहषत यणन्ति विप्र ते धियः देवैः अभे आगहि । अर्थ- कण्वको सन्तान तुमको पुकारती है विप्र तेरी स्तुति गाते हैं हे अग्नि दुवोंकें साथ आ | त म॑ं १ सू १४ ऋ ५-इठते त्वाम्‌ अब- स्यवः कण्वासः । अथै- कण्बके बेटे सद्दायता चाहते हुव तेरी स्तुति करत हैं । शुनःशपः १ (२४-३०) स्वामीदयानन्द ऋग्वेद भाष्यमें प्रथम मंडलके सूक्त २४ का ऋषि इस प्रकार डिखते हं “आजीगर्तिः शुनःशेपः छुत्रि-




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