सूरज प्रश्न | Suraj Prashn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ता .. { ११
भषिक से अधिक घुखी दो छके, चद सुखौ शोकर वड दर को
सुखी कर सके । इस का विज्ञान के साथ न विरोषहि न विरोध
दो सकता हैं ।
हां | घर्म के प्रचार के ढिये शिक्षण-शालाओों के समान ने
सम्प्रदाय बनाये जाते हैं. और उनम पाठ्यपुस्तकों के समान नो
आचार-बिचार के शेक भवकम्बन बनाये जाते हैं उनमें से ने
अरा जीणे भसामारिक भादि दो जाता दे विज्ञान उस का. विरोध
करता दे । ज्ञान-संस्थानों के समान धर्म सस्थाओं का भी विकास
होता है ओर विकास में पुरानी कुछ बातें कट ही जाती दें, पर इसे
मुक्त का विरोध नहीं कऋइत । ऐसा विरोध तो विज्ञान विज्ञान में मौ
होता दे । आज के विज्ञान की बदुत-सी बातें भनेवाडे कठ क्यु
बिज्ञान बदल सकता है-यइ विज्ञान का विरोध नई दे, विकास दे ।
धमे सस्थार्भा में भी विकास इआा हे ओर उस विकास में
विज्ञान का काफी हाथ दे | मूत-फिशाच यक्ष भादि के भय के
जाधार पर खड इए धर्म विछ्ासित होते होते परमत्रद्य या निरीशर-
बाद या सत्पच्नरबाद पर खड़े हो गये हैं |
इसेस इस बात का पता ता चल दी जात है कि विज्ञान
धप का बिरेध्री नहीं दे बल्कि सद्दायक दे | पर आज का विज्ञान
घः मे सायक क्यों नहीं दै १ व इस की बृद्धि क्यो नरद कात 2
इस का छचर यद दे कि विज्ञान धमे कां संहावक है,
प्रक, रक्तेन या वर्ता नहीं । इसडिये धर्म अगर विज्ञान की
सडयता ले तो बह देगा, न ले तो बड़ क्या करेगा ! विज्ञान की जहं
तक मर्यादा दे-दाक्ति है, बहीं तक बढ काम करेगा । इस के अगि
अगर धमै या धार्मिकनजगद् या मनुष्य काम करेंगा तो उस का
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