अन्तस्तल की साधना | Antstal Ki Sadhana

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Antstal Ki Sadhana by स्वामी सत्यभक्त

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ कर ज्यो का त्यों वजा जाता हैं बन तीथकर के महान पुरुपा्थ फो समद्यते हं न उसके आने की उपयोगिता, न श्र्मसंस्था का ३. रूप | पुराना रिकार्ड तो साम्प्रदायिक आचार्य वजाते हौ रहते हैं, म, पाश्वेनाथ का रिकार्ड आचाये केशी बजा ही रहे थे, इसके लिये तीथंकर की जरूरत नहीं। होती. उसकी जरूरत द्वोती है युग फे अनुसार पक नया घम, पक्र नह धर्म संस्था, एक नया _ ध्मती्ै वनानें के लिये । प अहिंसा सत्य आदि धमे के मोलिक तत्व भले टी अनादि अनन्त हां, पर वे किसी एक घम की या घमंसंस्था की चपातां नद्द। हात । व सभा के हैं ।फेर भा दतिया मे जा जुद- जुदे धर्म हैं अुन+ भेद का कारण आन मो लिक तत्वों को जनक्ने और समाज क जावन म उतारने भम मिछन्भेन्न प्रणाली ह। देशकाल ओर पात्र के भेद से यह प्रणालीभेद पदा होता है | जनधम भी आज से ढाई हजार चर पहिल मगध की परिस्थिति ओर म. महावीर की दॉप्टि क अनुसार লী हुई एक प्रणाल। है | इसका निर्माण एक दिन में नहीं हुआ, अन्तमुहत के शुक्लध्यान से फेचलश/न पेंदा होते ही सब फा सब एक साथ हीं कक गया ५ उसके लिय म. मद्दावीर को गाहंस्थ्य जीवन फे सादे-उन्तीस वप के अनुभवों के सिवाय साढ़ बारह व फ तपस्याक्रार क अनुभर्वो से तथा दिनरात फे मनन चिन्तनसे জাল উনা पड़ा লন লাল भी तौल वप की क्वस्य मवस्था के अनभवों और विचारों न भी उसका संस्कार क्रिया । तब जन- चर्म का निर्माण हुआ । आचार के नियम, साधुसंस्था का ढांचा, विश्वस्चना सम्बन्धी दशन, प्राणिविज्ञान, आदि सभी वातो पर मद्दावीर जीवन की पूरी छाप है । ये सब उत्तके जाचन की घट- ৯ ২৩ नाभां खं उनक मतन चर्तन जार अचुभवा से सम्बन्य रखते ছ্‌




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