सूरज प्रश्न | Suraj Prashn

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Suraj Prashn  by स्वामी सत्यभक्त

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ता .. { ११ भषिक से अधिक घुखी दो छके, चद सुखौ शोकर वड दर को सुखी कर सके । इस का विज्ञान के साथ न विरोषहि न विरोध दो सकता हैं । हां | घर्म के प्रचार के ढिये शिक्षण-शालाओों के समान ने सम्प्रदाय बनाये जाते हैं. और उनम पाठ्यपुस्तकों के समान नो आचार-बिचार के शेक भवकम्बन बनाये जाते हैं उनमें से ने अरा जीणे भसामारिक भादि दो जाता दे विज्ञान उस का. विरोध करता दे । ज्ञान-संस्थानों के समान धर्म सस्थाओं का भी विकास होता है ओर विकास में पुरानी कुछ बातें कट ही जाती दें, पर इसे मुक्त का विरोध नहीं कऋइत । ऐसा विरोध तो विज्ञान विज्ञान में मौ होता दे । आज के विज्ञान की बदुत-सी बातें भनेवाडे कठ क्यु बिज्ञान बदल सकता है-यइ विज्ञान का विरोध नई दे, विकास दे । धमे सस्थार्भा में भी विकास इआा हे ओर उस विकास में विज्ञान का काफी हाथ दे | मूत-फिशाच यक्ष भादि के भय के जाधार पर खड इए धर्म विछ्ासित होते होते परमत्रद्य या निरीशर- बाद या सत्पच्नरबाद पर खड़े हो गये हैं | इसेस इस बात का पता ता चल दी जात है कि विज्ञान धप का बिरेध्री नहीं दे बल्कि सद्दायक दे | पर आज का विज्ञान घः मे सायक क्यों नहीं दै १ व इस की बृद्धि क्यो नरद कात 2 इस का छचर यद दे कि विज्ञान धमे कां संहावक है, प्रक, रक्तेन या वर्ता नहीं । इसडिये धर्म अगर विज्ञान की सडयता ले तो बह देगा, न ले तो बड़ क्‍या करेगा ! विज्ञान की जहं तक मर्यादा दे-दाक्ति है, बहीं तक बढ काम करेगा । इस के अगि अगर धमै या धार्मिकनजगद्‌ या मनुष्य काम करेंगा तो उस का




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