भक्ति - सूत्र | Bhakti - Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ सबित-सुत्र देख लिये मन के भी जाल । गजर चुके उन सब पडावो से। अब भक्ति की थोडी बात हौ । “ अव 1 ~ अचानकं शुरू होता है शास्त्र । सिफं भारत मे ऐसे शास्त्र हैं जो ' अथातो ' से शुरू होते हैं, दुनिया की किसी भाषा मे ऐसे शास्त्र नही हैं । क्योकि यह तो बडा अधूरा मालूम पड़ता है । कही ' अब ' से कोई शास्त्र शुरू होता है ! यह तो ऐसा लगता है जैसे इसके पहले कोई बात चल रही थी, कोई कथा आगे चल रही थी जो छूट गयी है, कोई बीच का अध्याय है, प्रारभ का नही । पश्चिम के व्याख्याकार जब पहली दफा ब्रह्मसूत्र से परिचित हुए - वह भी ऐसे ही शुरू होता है. * अथातों ब्रह्म जिज्ञासा, ' अब ब्रह्म की जिज्ञासा - तो उन्होने कहा कि इसके पहले कोई किताब थी जो खो गयी है ¦ निश्चित ही, क्योकि यह ता मध्य से शुरुआत हा रही है । नहीं, कोई किताब खो नहीं गयी है, यह शुरुआत ही है । यह जीवन की किताब का आखिरी अध्याय है । शास्त्र शुरू ही हो रहा है, मगर जीवन की किताब का आखिरी अध्याय है । यह उनके लिए नही है जो अभी शरीर की वासना में पढ़े हो । वे इसे न समझ पाएंगे । अभी दर हैं। अभी फल पकेंगा । अभी उनके गिरने का समय नहीं आया । यह उनके लिए नही है जो अभी प्रेम की कविता में डूबे हैं और उसको ही जिन्होंने आखिरी समझा है । उन दो को छोड़ने के लिए * अथातो ' । तो, शुरू में ही शास्त्र कह देता है कि कौन है अधिकारी । यह अधिकारी की व्याख्या है ' अथातों ' । यह कहता है कि अगर चुक गये हो कामवासना से, भर गया हो मन-तो, अन्यथा अभी थोडी देर ओर भटको, क्योकि भटके बिना कोई अनुभव नही है । अगर अभी प्रेम मे रस आता हो तो क्षमा करो, अभी इस मदिर में प्रवेश न हो सकेगा । अभी तुम किसी भौर ही प्रतिमा के पुजारी हो, अभी परमात्मा की प्यास नहीं जगी । अभी तुम या तो बोज हो या वृक्ष हो अभी फूल होते का समय नहीं माया । और जब तक समय न भा जाए तब तक कुछ भी तो नहीं होता । इसलिए व्यथे मेहनत नहीं करनी है । यह, जीवन की पाठशाला में जिनका आखिरी अध्याय करीब आ गया, उनके लिए है । इसका यह मतलब नहीं है कि यह्‌ बृढो के लिए है । जैसे पश्चिम के लांगा ने गलत समझा - उन्होंने समझा कि यह आधी किताब है, आधी शायद खा गयी - वैसे पूरब के लोगो ने भी गलत समझा । उन्होंने समझा कि यह तो बूढों के लिए है । | नही, प्रौढो के लिए है, बूढो के लिए नही है । प्रौढ कोई कभी भी हो सकता




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