महोत्सव दर्शन | Mahotsav Darshan

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Mahotsav Darshan by नीरज जैन - Neeraj Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गये थे । उसके उपरान्त महोत्सव की कोई ऐसी गतिविधि नहीं थी, जिसमें बाबूजी ने व्यवित- गत रुचि लेकर, उसके सचालन का प्रत्यक्ष या परोक्ष दायित्व न सम्हाला हो । वहाँ वे स्वय मुनिश्नी विद्यानन्दजी और कर्मयोगी भटारक स्वामीजी के दाहिने हाथ बन कर रहे। हजारो छोटी-बड़ी समस्याओ को उन्होंने धीरज, प्रेम और सद्भावनापूर्ण कौशल से सुलझाया । महोत्सव के इतिहास के साथ उनका व्यक्तित्व और कृतित्व स्वणाक्षरों मे अकित रहेगा । महोत्सव को सफलता के लिए बाबूजी के दृढ-सकल्प, उनकी उत्कट लगन और विलक्षण कार्ये-क्षमता को देख 'इण्डियन एक्सप्रेस के विशेष सवाददाता ने श्रवणबेलगोल से 20 फरवरी, ४] को ठीक ही लिखा था --““इस महान आयोजन के पीछे आशा और आत्म-विश्वास की मूति, प्रेरणा का एकं अजस्र स्रोत, दैवी वरदान की तरह सलग्न है, वह हैं महोत्सव समिति के बहत्तर वर्षाय अध्यक्ष, वरिष्ठ उद्योगपति, माह श्रेयासप्रमाद जैन । श्री जन अपनेआप मे एक परिपूर्णं सस्था है । इसं आयोजन को मर्वागीण सफलता दिलाने का सकल्प लेकर वे पिछले चार-पाँच वर्षों से दिन रात उसी चिन्ता मे लगे है । आयोजन के हर छोटे-बडे कायं को, अनुभव सगत मार्गदर्शन प्रदान करते हुए, अपनी अतिसतकं और अनुपम व्यवस्था प्राणाली के अतर्गत, प्रतिक्षण सफलता की ओर अग्रमर करने के लिए श्री जैन चौबीसों घण्टे अनवरत और अथक परिश्रम कर रहे है ।”' बाईस फरवरी को, जब महोत्सव का मुख्य अभिषेक निकिघ्न ओर शानदार ढग से सम्पन्न हो चुका, तब दूसरे दिन श्रवणबेलगोल में उपस्थित विशाल जनसमुदाय ने अपने प्रिय अध्यक्ष को, आचायों, मुनियो और विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में, 'श्रावक-शिरोमणि' की सम्मानपूर्ण उपाधि से विभूषित किया । उस अवसर पर आभार व्यक्त करते समय श्री माहुजी ने अपने कृतित्व को भगवद्‌-भक्ति द्वारा अजित पुण्य का फल निरूपित करते हुए, अपने लिए जन्म-जन्मान्तर नक धमं समागम की कामना की थी । उनको यह भावना उस समय उन्हीके शब्दो मे पुन व्यक्त हो उठी, जब बाबूजी ने विख्यात अमरीकी पत्रिका “टाइम्स' को साक्षात्कार देते हुए एक बहुत आस्थापूर्ण बात कही । पत्रिका के प्रतिनिधि की इस टिप्वणी पर कि 'ऐसा समारोह अब यहाँ हजार साल बाद फिर होगा, पर उस समय आप नही होगे । बाबूजी का उत्तर था--“हडार साल बाद, जब यहाँ हिसहस्राब्दि महोत्सव लायोजित होगा, तब भी मे गोमटस्वामी के वरणो मे उपस्थित रहूंगा । उस समय किस पर्याय में रहूंगा यह तो मैं नहीं जानता, पर जब तक आवागमन के अक्र से मुक्ति नहीं मिलतो तब तक मैं | भगवान बाहुबली को भक्ति मे संसग्न रहने की भावना नित्य दोहराता हूँ ।” । {1 15 : : बहोत्तव र्न




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